शनिवार, जनवरी 16, 2010


हंसते अंधेरे से भयभीत होना छोड़ दो
जीतना है जंग तो आंसू बहाना छोड़ दो।


लूटने आता लुटेरा, आगे बढ़ कर लूट लो़
जिंदा रहने के लिए गिड़गिड़ाना छोड़ दो।


उठने लगता है तो दुश्मन का हाथ काट दो
नपुंसकों की तरह सर झुकाना छोड़ दो।


गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने की ठान लो
बलहीन पशुओं की तरह पुंछ हिलाना छोड़ दो।


बेबसी, लाचारी से तुम तोड़ दो रिश्ता
इंसान बन आये हो तो इतिहास लिखकर छोड़ दो।।

1 टिप्पणी:

  1. रुको ना तुम झूको ना तुम
    विरागी जीवन त्याग दो
    सरस्वती के पुत्र हो
    चेतना का साथ दो।
    अंकुर कमाल का काम कर रहे हो , करते रहो।
    असित नाथ तिवारी

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