सोमवार, जुलाई 09, 2012

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                        thanx.

गुरुवार, जुलाई 05, 2012

अखिलेश के फैसले पर सवाल


महज आठ साल का अनुभव और विरासत में मिली राजनीति के आसरे पांच कालिदास मार्ग तक का सफर तय करनेवाले अखिलेश यादव ने बतौर मुख्यमंत्री सौ दिनों के दरम्यान जो दो बड़े फैसले लिये उसे उन्हें चौबीस घंटे के भीतर बदलना पड़ा। उन्हें अपने ही बातों से मुकरना पड़ा। नेता के लिए फैसले में फेरबदल कोई मायने नहीं रखता, लेकिन जिन लोगों की अखिलेश यादव से उम्मीदे हैं, उन्हें जरूर झटका लगा है।
   अखिलेश यादव के दो बड़े बेतुके फैसले ने उनकी परिपक्वता पर सवाल खड़ा कर दिया है । जिस राज्य की आधी जनसंख्या को भरपेट खाना नहीं मिल रहा। तनभर कपड़े नहीं हैं । सड़क, स्वास्थ्य से लेकर बुनियादी सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है। इंसेफेलाइटिस से मर रहे बच्चों के लिए कोई उपाय खोजने की बजाय सरकार अगर माननीयों के लिए लक्जरी गाड़ी खरीदने का ऐलान कर देता है, तो उसका चौतरफा निंदा होना लाजिमी है। और यही हुआ। जिसके बाद अखिलेश यादव को अपने फैसले से मुकरना पड़ा। इससे पहले मॉल को सात बजे के बाद बिजली नहीं देने के फैसले के बाद भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति हुई थी। अखिलेश यादव को काफी किरकिरी झेलनी पड़ी ।       
    ऐसे में अब सवाल उठने लगा है कि क्या अखिलेश यादव अपरिपक्व मुख्यमंत्री हैं ? क्या वो फैसला लेने में जल्दबाजी करते हैं ? क्या अखिलेश की आड़ में कोई और फैसला ले रहा है ?  या फिर वो राजनीतिक नफा नुकसान का हिसाब लगाये बगैर प्रशासनिक अधिकारियों के कहने पर फैसला लेते हैं ?  
   38 साल के अखिलेश यादव जब साइकिल पर चढ़कर लोगों से वोट मांगने सड़क पर निकले, सच्चाई सी दिखनेवाले वादे किये तो तेज तर्रार युवा नेता को देखकर लोग मुलायम राज को भूल गए । पुरानी सरकार से आजिज लोगों को लगा कि अखिलेश कुछ ऐसा करेंगे, जिससे उत्तर प्रदेश का वो मान सम्मान फिर वापस लौटेगा, जो पिछले चालीस सालों मे कहीं खो गया । लेकिन सत्ता मिलते ही कमान घाघ समाजवादियों के पास चलागया । अखिलेश बेबस और लाचार दिखने लगे। चाहे फिर वो सपा कार्यकर्ताओं पर अंकुश लगाने की बात हो, मंत्रिमंडल गठन की बात या फिर प्रशासनिक फेरबदल की ।
      दरअसल अखिलेश यादव के सीएम बनने के बाद उन्होंने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया, जिससे अपराधियों में खौफ हो । कमोबेश हर एक दो दिन के बाद रेप की ख़बर सामने आती है। हत्या, लूट, छिनौती जैसी घटनाएँ आम है । अखिलेश के आदेश के बावजूद समाजवादी पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं की गुंडई बदस्तूर जारी है। यूं कहें कि बिगड़ैल सपाइयों पर भी अखिलेश लगाम नहीं लगा पाये। जिससे पार्टी की छवि सुधर सके। मुलायम राज से बेहतर स्थिति अभी तक दिखी नहीं है।
     जब प्रशासनिक अधिकारियों की फेरबदल की बात हुई तो, भी वही चेहरा सामने आया, जो मुलायम राज में हुआ करता था। चाहे वो मुख्य सचिव हो या नोएडा अथॉरिटी के अधिकारी । न तो दाग़ का ख्याल हुआ और न ही सम्मान का। ऐसे में एक बात तो साफ होता है कि सबकुछ अखिलेश यादव के मनमुताबिक नहीं हो रहा । क्योंकि चुनाव के दौरान की गई बातों को याद करें तो अखिलेश यादव को ये पूरा अहसास था, कि लोग पिछले मुलायम राज से खुश नहीं थे । इसलिए उन्होंने इस बार युवाओं के जरिए सत्ता में आने की बात की । वादा किया कि वो कुछ गलत नहीं दोहराया जाएगा जो मुलायम राज में हुआ था। मंत्रिमंडल गठन में भी वैसा ही दिखा । वही पुराने चेहरे। जेल की सजा काट चुका निर्दलीय विधायक जेल मंत्री बना। और बहुत कुछ।
    कंप्यूटर और लैपटॉप के जरिये समाजवाद की नई परिभाषा गढ़नेवाले अखिलेश यादव अगर रॉल मॉडल बनना चाहते हैं तो उन्हें कड़े फैसले लेने होंगे। परिवारवाद और दोस्ती को दरकिनार कर राज्य के हित में ऐसा सोचना होगा, जिससे लोगों में उनके प्रति विश्वास कायम रहे। क्योंकि  उन्हें अभी लंबी दूरी तय करनी है।   

गुरुवार, जून 28, 2012

मैं बेटी हूं


मैं बेटी हूं
प्यारी सी
नन्हीं सी
छोटी सी
सब मुझे
दुलारते हैं
पुचकारते हैं
गोद में बिठाते हैं
मेरे साथ खेलना चाहते हैं
मेरी मुस्कान पर, हंसते हैं
मेरी आह पर, तड़पते हैं
फिर क्यों मेरी ही जैसी
मेरी बहनों से
भेदभाव करते हैं
क्यों उन्हें
जन्म से पहले मार देते हैं ........ ?

रविवार, जून 24, 2012

धर्मनिरपेक्षता तो बहाना है.....


पिछले कुछ दिनों में  बीजेपी को लेकर जदयू के  तेवर इतने तल्ख हो चुके हैं कि दोनों के रिश्ते पर बन आई है....सोलह साल का साथ कभी भी खत्म हो सकता है...गठबंधन में धर्मनिरपेक्षता की गांठ पड़ चुकी है...
           आखिर नीतीश कुमार धर्मनिरपेक्षता की वो कौन सी घेरा बना रहे हैं जिसमें लालकृष्ण आडवाणी, डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सरीखे नेता तो आते हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी नहीं...बाबरी मस्जिद ढांचा गिराने के आरोपी आडवाणी को प्रधानमंत्री बनाने में कोई आपत्ति नहीं है,,,लेकिन नरेन्द्र मोदी बर्दाश्त नहीं....और सबसे अहम बात कि कट्टरवाद के कोख से जनमे बीजेपी के साथ रहने में भी नीतीश कुमार को कोई गुरेज नहीं है.....
          दरअसल नीतीश कुमार जो धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा गढ़ रहे हैं, उसे रानीतिक तौर पर समझना होगा...  1996 से लेकर 2005 तक नीतीश के लिए बीजेपी मजबूरी थी...क्योंकि नीतीश कुमार उस हैसियत में नहीं थे कि वो बीजेपी से इतर अपनी पहचान बना सके.....नीतीश उस वक्त पटना का सपना देख रहे थे...बिहार में कांग्रेस की स्थिति बढ़िया थी नहीं....और लालू के  खिलाफ बीजेपी ताल ठोक रही थी...ऐसे में नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ गलबहियां करना मजबूरी थी...ऐसे में अगर 2002 में गुजरात दंगे के वक्त रेल मंत्री रहते नीतीश का मोदी के खिलाफ कुछ न बोलना चौंकाता नहीं है....2010 तक मोदी को लेकर नीतीश कुमार के मन में कोई आपत्ति नहीं थी....लेकिन 2010  चुनाव में 242 सीट वाले विधानसभा में 115 सीट हासिल करने के बाद नीतीश कुमार को नरेन्द्र मोदी खटने लगे....गौर करनेवाली बात है कि  2010 में बिहार में ऐतिहासिक जीत के बाद नीतीश कुमार को लेकर प्रधानमंत्री की बात होने लगी,....उन्हें लगने लगा है कि अगर गुजरात के रास्ते मोदी दिल्ली का सपना देख सकते हैं तो फिर बिहार के जरिये मैं क्यों नहीं....और दिल्ली पहुंचने में सबसे बड़ा रोड़ा मोदी बन सकते हैं....राजनीति के शातिर खिलाड़ी नीतीश कुमार गुजरात दंगों का दाग दिखाकर मोदी को रास्ते से अलग करने में लग गये.... 
           जब जब दो मुख्यमंत्रियों की तुलना होती है तो आमने-सामने नीतीश और मोदी होते हैं.....और जानकार दोनों में मोदी को ही बेहतर आंकते हैं...कहीं न कहीं नीतीश को ये बातें  खटकती है....बिहार को बदलने का दावा करनेवाले नीतीश कुमार पिछले सात सालों में कागजी आंकड़ों से इतर वो कुछ नहीं कर पाये जो जिससे गुजरात की जनता से बेहतर बिहार की जनता महसूस कर सके....ऐसे में नीतीश कुमार को लगता है कि  जो छवि बनाना चाहते हैं वो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के बाद ही हो सकता है....और इसके लिए कांग्रेस से मिलना ही फायदेमंद रहेगा... 
          एक और अहम बात....नीतीश कुमार ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि अगर बिहार में बने रहना है कि मुस्लिमों को नाराज नहीं कर सकते....क्योंकि सामने लालू खड़े हैं...मुस्लिमों के लिए मोदी का विरोध करना भी नीतीश के लिए मजबूरी है......यही कारण है कि धर्मनिरपेक्षा की वो परिभाषा गढ़ रहे हैं,,,,जिसमें दूर दूर तक नरेन्द्र मोदी फिट ना बैठ सके......

सोमवार, जून 18, 2012

मुलाकात ( लप्रेक )


 इको पार्क । रोमांस करने का सबसे फेमस जगह । जहां शहर की कमोबेश हर जोड़ियां पहुंचती है । यहीं तय हुआ था दोनों का  मिलना । लगभग सालभर से दोनों के बीच बातें होती थी । पहलीबार होंगे आमने-सामने ।  मुद्दतों का इंतजार । कोई इन दोनों से पूछे । आमीन ! ।
     दोनों पार्क पहुंचे । एक बेंच पर जाकर बैठ गये । लगभग दो गज की दूरियों के बीच दोनों बैठे थे । दोनों की आंखों में एक अजीब सी चमक । खाने के लिए  चिप्स लाया और फिर फ्रूटी । बातें शुरू हुई । पहली मुलाकात से लेकर अब तक सारी बातें । प्यार, परिवार, पढ़ाई...। और मुस्कुराहटों के बीच शादी तक की बातें । 
       फिर दोनों टहलने लगे । चलते-चलते । दोनों  एक दूसरे में लिटपी जोड़ियों को  देखते । कभी-कभी मुस्कुराते हुए दोनों की नज़रें मिल जाती । दोनों झेंप जाते ।  
         फिर शाम हो गई । घर जाने का वक्त । अचानक दोनों की आंखें सूनी हो गई । क्योंकि ये पहली और आखिरी मुलाकात थी । चंद मिनटों की मुलाकात । दो पल का साथ । छोड़ गई थी जिंदगी भर के लिए सौगात । 
 अब शायद ही कभी मिले- लड़की
हां- लड़का
'आपसे चंद लहमों की मुलाकात का ये अमूल्य तोहफा जिंदगी की गुलदस्ते में ताउम्र सजा के रखूंगा'
मैं भी- लड़की
 दिल में एक अजीब सा अहसास लिये दोनों अपने अपने घरों की ओर चल दिये ।  

बुधवार, जून 13, 2012

बोली का रूतबा



भाषा विनम्र होती है । बोली उदंड ।  भाषा अनुशासित रहती है, अभिभावक की देखरेख में रहनेवाले बच्चों की तरह । और बोली बिना अभिभावक वाले बच्चों की तरह । पूरी तरह से बेलगाम । जो किया वही ठीक है । इयाकरण-व्याकरण से कोई मतलब नहीं ।  जैसा बोला, वैसा ही सही ।  किसी की परवाह नहीं । किसी के बाप के राज में नहीं रहते । क्यों सहेंगे किसी का डंडा । क्यों चलेंगे किसी के कहे मुताबिक । सब कुछ अपने मने से । सीना ठोंककर । पसंद करना है तो करो, वरना भाड़ में जाओ ।
 जिस भाषा से मन हुआ उसी से शब्द उठा लिये । रोक सको तो रोक लो । देख लेंगे । नहीं हुआ तो अपना ही शब्द बना लिये । बोली में  बड़ी खासियत होती है शब्द निर्माण की । ऐसे ऐसे शब्द बनते हैं कि भाषा सोच भी नहीं सकती । सुनकर दंग रह जाती है । बनावटी शब्दों पर बोली ऐसी तगड़ी पॉलिश करती  है कि कुछ दिनों बाद भाषा भी उसकी चमक में खो जाती है । जैसे पहले उद्दंड लड़के को देखकर अनुशासित और तथाकथित पढ़नेवाले बच्चे भी सिगरेट पीने लगते हैं ।
   बोली अपना अस्तित्व खुद बनाती है । इसलिए बेबाक होती है । ठेंठ । मुंहफट्ट । ज्यादा सोचती नहीं । किसी के पीछे भागती नहीं । बोली का इफेक्ट भी जबर्दस्त होता है । पटना में बोली का चलन सबसे ज्यादा है । हर सार्वजनिक जगहों पर बोली का कब्जा है । रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, ऑटो स्टैंड, सरकारी दफ्तर या फिर डॉक्टर के क्लिनिक  पर । व्याकरण पर सवार होकर  भाषा  बोलने से काम नहीं होगा । घिघियाते रहेंगे, कोई नहीं सुनेगा ।  जो काम करवाने में भाषा के पसीने छूट जाते हैं, उसे बोली यूं करवा लेती है । रूतबे में रहती है बोली । और जो बोली का रूतबा रहता है, वहीं इसे बोलनेवालों का । यही कारण है कि इसकी लोकप्रियता भी जबर्दस्त होती है ।

शनिवार, जून 09, 2012


गिरना पड़ता है संभलने के लिए
लड़ना पड़ता है जीतने के लिए
वक्त किसी का नहीं होता
वक्त के साथ चलना पड़ता है
आगे बढ़ने के लिए...
हर राह पर रोड़े हैं यहां
मुश्किलें ज्यादा,
आराम थोड़े से हैं यहां
हर शब्द बहुअर्थी हैं
सोचना पड़ता है समझने के लिए...
हर चेहरा फरेबी है यहां
हर शख्स मतलबी है यहां
पग पग पे यहां साजिश है
धोखा है,
संभलना पड़ता है मिलने के लिए ....

बुधवार, जून 06, 2012

भरोसे का टूटना....


भरोसा जब टूटता है
तो उम्मीदें बिखरती है
सपने तड़पने लगते हैं
अपने से दिखने वाले
अनजाने लगने लगते हैं
दर्द होता है
अफसोस होता है
और फिर
ख्वाबों का तूफान
अचानक खामोश हो जाता है ।।

रविवार, जून 03, 2012

नज़रों का यूं मिलना..

वो मेरी ओर देखती है
मैं उसकी ओर देखता हूं
फिर जो होता है
वो सुखद अहसास देता है
न हाथ हिलते हैं
न होंठ खुलते हैं
सिर्फ नज़रों से
 नज़र की बात होती है
ये सिलसिला
पल दो पल ही चलती है
मगर बहुत ख़ास होती है
नज़रों का यूं मिलना
इत्तेफाक होता है
पर यही इत्तेफाक तो
इतिहास बनता है ।।

शनिवार, जून 02, 2012

हत्यारों का मुखिया या वीर ब्रह्मेश्वर


वही हुआ जिसकी आशंका थी । ब्रह्मेश्वर नाथ सिंह ऊर्फ ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या कर दी गई । जो जैसा करता है, वो वैसा ही पाता है । ब्रह्मेश्वर सिंह की जो शख्सियत थी, या कहें कि उनकी जो छवि थी, उसका  ऐसा ही अंत होता है । सत्तर साल के बूढे शरीर में चालीस गोलियां  दाग दी गई । 273 हत्याओं का  मुखिया पलभर में ढेर हो गया । 
          आप ब्रह्मेश्वर सिंह को हत्यारों और नरसंहारों का मुखिया कह सकते हैं । आप उन्हें बेदर्द और बेदिल इंसान कह सकते  हैं । लेकिन सवाल उठता है कि आखिर बरमेसर नाम का दीनहीन, दुबला पुतला शरीर वाला इंसान हत्यारों का सरदार कैसे बन गया  ?  आखिर कैसे तथाकथित ऊपरी तबके के लोग उसके पीछे दौड़ पड़े  ?  वो कैसे बुद्धिजीवियों के बड़े तबके का हीरो बन गया ?  बरमेसर मुखिया कोई पेशेवर अपराधी नहीं था । वो पैसों के लिए या फिर स्वयं स्वार्थ पूर्ति के लिए ऐसी सेना नहीं बनाई, जो लोगों की बेरहमी से हत्या करती थी । 
         दरअसल हालात ने बरमेसर को ब्रह्मेश्वर मुखिया बना दिया । शातिर और खौफनाक दिमाग की करतूत एक तरह से प्रतिकार था । जिस समय ब्रह्मेश्वर मुखिया की अगुवाई में रणवीर सेना एक के बाद एक नरसंहारों को अंजाम दे रही थी, उस वक्त बिहार में समाजिक और राजनीतिक समीकरण कुछ यूं थे, जिसका परिणाम मौते होती थी । दरअसल तथाकथित निचले तबकों का एक समूह  सरेआम सत्ता को चुनौती दे रहा था । जमींदारों की जमीन पर जबरन कब्जा कर रहा था । खेतों से फसल लूट लिये जाते थे । जमींदारों की बहू बेटियों की इज्जत खेला जाता था । सरकार मौन थी । प्रशासन बेपरहवाह था । पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही थी । छोटे छोटे कई संगठन पैदा हो गये थे ।  एमसीसी जैसे संगठनों के हौसले बुलंद होते जा रहे थे । फेल होती व्यवस्था के बीच इन्हीं संगठनों से निपटने और अपनी बहू बेटियों की इज्जत बचाने का बीड़ा उठाया ब्रह्मेश्वर सिंह ने । उन्होंने रणवीर सेना के नाम से एक संगठन बनाया ।  जिसमें कई छोटे छोटे संगठन शामिल हुए । जमीनदार तबके के लोग उसमें शामिल होने लोगे । पैसा और हथियार जमा होने लगा । और फिर एमसीसी के नरसंहार के बाद रणवीर सेना की ओर से नरसंहार होने लगा । 
        जिस तरह से ब्रह्मेश्वर मुखिया की अगुवाई वाली रणवीर सेना कत्लेआम मचाती थी । महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ती थी । एक-एक नरसंहारों को अंजाम दिया । उससे  इतिहास में ब्रह्मेश्वर मुखिया का नाम एक कातिल के रूप में दर्ज होगा, लेकिन जातिगत समीकरण में उलझे बिहार का एक बड़ा तबका ऐसा है, जो उन्हें 'वीर ब्रह्मेश्वर' के नाम से याद रखेगा । 

मंगलवार, मई 01, 2012

बहन की व्यथा


  
    नमस्कार
            मैं उत्तर प्रदेश की एक बेटी हूं....आप मुझे किसी भी नाम से जान सकते हैं...मुन्नी, मीना, रजिया या कुछ और.. आज मैं व्यथा सुनाऊंगी इंसानियत की,,,मासूमियत की...कलेजा थाम के सुनियेगा...क्योंकि इसमें किसी का दर्द छुपा है...किसी की ज़ार जार रोती ज़िंदगी तो किसी की मौत की दास्तां है ये....ये व्यथा है मेरी उन बहनों की जिसे दरिंदों ने बलात्कार के बाद जलाकर मारने की कोशिश की...या फिर मार ही डाला...मेरी उन बहनों की जिसकी हंसती खेलती ज़िंदगी पल भर में नर्क बन गई...जिसका सपना देखते ही देखते चकनाचूर हो गया...जो या तो दुनिया छोड़ गई या फिर जिंदा लाश बनकर रह गई...ये मेरी उन बहनों की व्यथा है जिसे इंसान के शक्ल में भेड़ियों ने नोचा है...जिसके बेजान जिस्म के साथ हैवानों ने खेला है...आज मैं बताऊंगी अपनी बहनों की ऐसी सच्चाई जो उसे शूल की तरह चूभो रही है...जिसका दर्द उसे ताउम्र सालता रहेगा...मेरी इन बहनों की तदाद कोई एक, दो या तीन नहीं है...कई हैं...जो हर गली मुहल्ले में वहशी दरींदों के शिकार हुई हैं...आज मैं उन तमाम ज़ख्मों को कुदेरूंगी,  जिसे अपना बनकर गैरों ने मुझे दिया है...मैं वो घाव दिखाऊंगी जिसका दर्द सिसकियां बनकर मेरी बहनों की होठों से पल पल निकलती है...
         बेरहमी और बेदर्दी के फेहरिस्त काफी लंबी है...सबसे पहले बरेली की उस बहन की व्यथा...जिसके साथ तीन दरिंदों ने हैवानियत का खेल खेला,,,18 साल की मेरी वो बहन घर में अकेली थी...अपने सपनों की दुनिया  में खोई हुई थी,,,तभी तीन लड़कों ने घर में दस्तक दी...तीनों ने मिलकर उसके साथ बलात्कार किया...बेरहमी की  हद देखिए कि बलात्कार के बाद  हैवानों ने किरोसीन तेल छिड़ककर उसे आग के हवाले कर दिया...वो चिखती रही...चिल्लाती रही...लेकिन किसी ने उसे बचाना मुनासिब नहीं समझा...जब तक उसके घरवाले घर पहुंचते तब तक सबकुछ खत्म हो चुका था....मेरी बहन 80 फीसदी तक जल चुकी थी...अस्पताल पहुंचते पहुंचते उसने दम तोड़ दिया....ये तो एक तरह से ठीक ही हुआ क्योंकि मेरी उस बहन के लिए ये जिंदगी अब अभिषाप ही बन जाती......
            बाराबांकी में तो एक रिश्तेदार ने रिश्ते को आग के हवाले कर दिया...जिसपर मेरी बहन आंख मूंदकर भरोसा करती थी,,,जिसके बारे में वो गलत सोच भी नहीं सकती थी...उसी ने उसके साथ घिनौनी हरकत की...पहले घर बंदकर बलात्कार किया...और फिर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी...इतना ही नहीं आग लगाकर वो घर को बंद कर फरार हो गया..लेकिन मेरी उस बहन ने हिम्मत नहीं हारी....आग बुझाया और फिर शोर मचाया...शोर सुनकर आसपास के लोग मौके पर पहुंचे...और फिर उसे अस्तपाल में भर्ती कराया गया.....
             देवरिया में ही रिश्ता तार तार हुआ...मेरी एक बहन के साथ एक सिरफिरे ने पहले   दुष्कर्म करने की कोशिश की...मेरी जाबांज बहन ने जब उसका विरोध किया तो वो दरिंदा आगबबूला हो गया....लड़के ने पेट्रोल छिड़कर आग लागा दी...ये घटना शाम के  वक्त हुई जब घर के सब लोग छत पर सो रहे थे,,,लड़की घऱ में अकेली थी..तभी पड़ोस का वो लड़का,,,जिसे वो भाई कहकर पुकारती थी..वो चुपके से घर में घुसा और जबर्दस्ती करने लगा.....
                   गाजीपुर में मेरी बहन को उन लोगों ने आग का गोला ही बना डाला.....महज सोलह साल की थी मेरी वो बहन..रात के वक्त शौच करने के लिए घर से निकली थी...कुछ ही दूर गई थी कि अंधेरों का फयादा उठकार कुछ लड़कों ने उसे अपना शिकार बना लिया...पहले उसके साथ बलात्कार किया....और फिर पोल खुल जाने के डर से उसे जला दिया...आग की लपटों से घिरी लड़की जोर जोर से चीखने लगी...बच्ची की दर्दनाक आवाज सुनकर गांव के लोग जब तक उसके पास पहुंचते, तब तक दरिंदे फरार हो चुके थे...लोगों ने आग बुझाई और फिर लड़की को अस्पताल ले गये...लेकिन वो मौत से ज्यादा देर तक नहीं लड़ पाई....ज़िंदगी से हार गई.....
             अब सुनाती हूं फतेहपुर की उस बहन की व्यथा....जिसे अपनी हिम्मत की कीमत चुकानी पड़ी....घटना शिवपुरी के एक गांव की है....जहां बीस बरस की मेरी बहन के साथ कुछ दरींदों ने मिलकर बलात्कार किया...ये बात उन्होंने अपने घरवालों से बताई....उन्होंने हिम्मत दिखाई...चुप रहना ठीक नहीं समझा,,,घरवालों को साथ लेकर सामूहिक बलात्कार का केस दर्ज कराने पुलिस के पास पहुंची,,,पुलिसवालों ने उसे इंसाफ का भरोसा दिलाया....आंखों में न्याय की आस लिए वो घर लौट रही थी...तभी हैवानों ने उसे घेरकर पहले पिटाई की...और फिर मिट्टी तेल डालकर आग लगा दी....
             महोबा के भरवारा गांव में बेखौफ हैवानों ने घर में घुसकर मेरी एक बहन के साथ बलात्कार किया....मेरी वो बहन  घर में अकेली थी....अपने घर का काम कर रही थी....तभी एक लड़का घर में घुसा....घर को बंद कर दिया और फिर खेला हैवानियत का वो खेल...जिसने उसकी ज़िंदगी बर्रबाद कर दी....महिला के चीखने की आवाज सुनकर आस पड़ोस के लोग दौड़ पड़े....जब तक वो हैवान वहां से भागता तब तक लोगों ने उसे पकड़ लिया...
               लखीमपुर खीरी के भीड़ा क्षेत्र में भी मेरी बहनें सुरक्षित नहीं है...उसकी इज्जत और आबरू से खेलने का दौर बदस्तूर जारी है,,,ये घटना अंबारा गांव की है....कुछ ही दिन बाद उस लड़की की शादी होने वाली थी....वो दुल्हान बनने वाली थी....डोली पर चढ़कर अपने साजन के घर जानेवाली थी...लेकिन पड़ोसी ने ही उसका सत्यानाश कर दिया...उस दिन मेरी वो बहन घर में अकेली थी....तभी पड़ोस का एक लड़का घर में घुसा और उसकी आबरू लूट ली...जब लड़की ने इसका विरोध किया उसने धारदार हथियार से हमला कर दिया...वो गंभीर रूप से घायल हो गई....खुशी के ख्वाबों का पंख लगाकर उड़ने वाली मेरी बहन ग़मों के समंदर में डूब गई.....
              इलाहाबाद में तो  दरींदों ने हैवानियत की सारी हदें लांघ दी...हैवानों ने मेरी उन मासूम बहनों को शिकार बनाया गया....जिसे बलात्कार का मतलब भी न पता था....जो इसका विरोध करना भी नहीं जानती थी...जिसे ये भी नहीं पता था कि इस गंदे खेल की शिकायत करनी होती है...उसकी उम्र तो गुड्डे गुड़ियों से खेलने की थी....लेकिन हवस के अंधे बेरहमों ने उसे भी नहीं बख्शा....इसका खुलासा तब हुआ, जब गोद ली जा चुकी एक लड़की ने अपने घरवालों से बालगृह की कहानी सुनाई....सच्चाई जब सामने आई तो सब के सब हैरान रह गये....जिसे बच्चियां अंकल कहा करती थी....जो  उसका देखभाल करता था.....वो चपरासी ही बलात्कारी निकला...बच्चियों से बलात्कार की इस घटना के बाद प्रशासन महकमा हिल गया....
     ये तो कुछ  की कथा है....और भी कई बहनें हैं जो इस बदमानी की बेइंतहा दर्द लेकर कहीं गुमनाम ज़िंदगी जी रही है या फिर दुनिया छोड़ गई.... मेरी इस व्यथा पर गौर जरूर कीजिएगा...एक बार जरूर सोचिएगा...मेरी तरह वो आपकी भी बहने हैं...खासकर अखिलेश भैया आप जरूर ध्यान दीजिएगा...क्योंकि आपसे काफी उम्मीदें हैं....अगर समय रहते इन दरीदों के जिंदगी में बेरियां नहीं पहनाई गई, तो आपके राज में मां, बेटियां पैदा करना छोड़ देंगी.....
                             नमस्कार   

सोमवार, अप्रैल 30, 2012

वो...

दुआ में, आरजू में 
हवा में , खुशबू में
लफ्जों में, अरजों में
सर्द में, बरसात में
धूप में, छांव में
प्यार के हर मौसम में
हसीन ख्वाबों में
सांसों में, अहसासों में
दिल में, धड़कन में
रगो में दौड़ते 
लहु के कण कण में 
घाव में, जख्म में 
दर्द में, मरहम में
खुशी में, गम में
फुर्सत के क्षण में 
सिर्फ उनकी याद आती है....

सोमवार, अप्रैल 23, 2012

सीडी ने सिंघवी को निकम्मा कर दिया...


सीडी । बड़ी बकवास चीज है । इसका अविष्कार जिसने किया । बहुत बुरा किया । ऊपर से सोशल नेटवर्किंग साइट । इसने तो और भी सत्यानाश कर दिया । कल तक नेताजी बड़े काम के थे । आज निकम्मा हो गये हैं । कोई काम नहीं बचा । न पार्टी के प्रवक्ता पद बचा । न ही ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष पद । कौन नहीं करता है ये सब काम । ज्यादातर नेता करते हैं । उन्होंने कर लिया तो क्या बुरा किया । इतने बड़े वकील हैं । वकालत करते- करते नेता बने । इतना बड़ा पद । रूतबा । पैसा । पावर । आखिर किस काम के । इतना भी नहीं कर सकते । 
   सबसे बुरा किया ड्राइवर ने । उसने क्यों किया स्टिंग ऑपरेशन । किया तो किया, उसे नेट पर क्यों डाला । कितना विश्वास था उसके ऊपर । पता नहीं कौन सी दुश्मनी निकाल ली । एक बार भी नहीं सोचा । बोलता तो उसके लिए भी कुछ कर देते । लेकिन । सब खत्म कर दिया । कहीं का नहीं छोड़ा । किस- किस को विश्वास दिलाएंगे नेता जी कि सीडी नकली है । सीडी के साथ छेड़छाड़ की गई है । जिधर जाते हैं सब वही पूछता है । नजर टेढ़ी कर देखता है । और फिर हंस देता है । 
        बेचारे । प्रेस कांफ्रेंस करने आते थे तो कितना स्मार्ट लगते थे । व्हाइट कुर्ता । चेहरे पर मुस्कान । चश्मा के नीचे से झांकती हुई आंखें । हंसते हुए जवाब देते थे । अब मीडिया से तौबा कर लिया है । नहीं आएंगे मीडिया के सामने । सही किया नेता जी ने । क्यों आएंगे । चैनल वाला सब  कुदेर कुदेर कर पूछेगा । क्या-क्या किया । कैसे किया । कैसा महसूस किया । अब आप क्या कहेंगे ।  वगैरह । वगैरह । सब से तौबा कर लिया । 

रविवार, अप्रैल 22, 2012

दीदी राज में रहना है तो.....



आप अपने मन पसंद न्यूज़ चैनल नहीं देख सकते । आप सरकारी नेताओं के खिलाफ नहीं बोल सकते । इन सब के लिए आप को सरकार का रूल रेग्यूलेशन फॉलो करना होगा । आपको सरकार के हिसाब से चलना होगा । नहीं तो पुलिस पकड़ कर ले जाएगी । आपके ऊपर मुकदमा भी हो सकता है । आप जेल भी जा सकते हैं । सो, संभल जाइये । कोई प्राइवेट न्यूज़ चैनल देखने से पहले अपने घर के चारों तरफ ताक झांक कर लीजिए । कहीं कोई सरकार का भेदिया देख तो नहीं रहा । नहीं तो मुश्किलें बढ़ जाएंगी । ऐसा नहीं है कि यहां प्रेस पर सेंसरशीप लगा है । दरअसल यहां दीदी का राज है । यहां वही होगा, जो दीदी चाहती हैं । या फिर दीदी को चाहनेवाले चाहते हैं । हालांकि आपके लिए  दीदी अपना चैनल खोलने वाली हैं । जिस पर दीदी दाहाड़ मारेंगी । सरकार का बखान होगा । अखबार भी निकेलगा । सुबह- सुबह हत्या, बलात्कार, लूट जैसी घटनाएं देखने या पढ़ने को नहीं मिलेंगी । दिनभर में कभी नहीं । रात में भी नहीं । जिस घोटाले या भ्रष्टाचार को लेकर आप दिन रात माथा पच्ची करते हैं, वैसा कुछ देखने सुनने को नहीं मिलेगा । बस सरकार के वादों को दोहराया जाएगा । दावों को डंके की चोट पर ठोका जाएगा । 
   कार्टून बनाने वाले या उसे पसंद करने वाले आप सबसे पहले सावधान हो जाइये । आपको तो बचाने के लिए भी कोई नहीं आयेगा ।  
          आप अपनी बेटी या बेटे की शादी वहां नहीं कर सकते, जाहां आप चाहते हैं । वहां करिये, जहां सरकार चहाती है । हां, एक शर्त पर हो शादी हो सकती है । कि लड़का या ल़ड़की सत्ता पार्टी की सदस्याता ग्रहण कर लें । नहीं तो मंडप से दुल्हे को लौटना पड़ सकता है । अविवाहित लड़के-लड़कियां पहले संभल जाएं ।  प्यार इश्क करने से पहले एक-दूसरे से पूछ लें कि वो किस पार्टी से ताल्लुक रखता है । नहीं तो शादी से पहले तलाक हो जाएगा । 
             दीदी राज में रहना है तो इन बातों को ध्यान में रखना होगा । हां गलती से  लोकतंत्र और राजतंत्र के सिद्धांत में मत उलझिएगा । वरना फालतू में ब्लड प्रेशर बढ़ जाएगा । बीमार पड़ जाएंगे । डॉक्टर और दवाइ  का खर्चा अलग से । सो सावधान रहें । सुरक्षित रहें । अपना ख्याल रखें । दीदी के फरमानों को नज़र अंदाज़ करने की ग़लती कतई ना करें । आपकी ज़िंदगी का सवाल है ।  

शुक्रवार, मार्च 23, 2012

सचिन...सचिन और सचिन

सचिन का सौ शतक । इंतजार पूरा हुआ । सचिन का । सचिन के फैंस का । हर पारी में 90 पार पहुंचते ही दिल की धड़कन तेज़ हो जाती थी । आखिरकार वो क्षण भी आ गया । जब सचिन के चेहरे पर संतोष का भाव था । दबाव से उबरा सचिना का जलवा अगले मैच में देखने को मिला । बंगलादेश के खिलाफ मैच देखते-देखते एक बारगी मन में एहसास हुआ कि सचिन थक चुके हैं । लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ मैच में ग़लतफहमी दूर हो गई । मिड ऑन पर चौका । प्वाइंट पर चौका । विकेट के पीछे सिक्सर । बाइस गज पर दौड़ते वक्त कोहली को चुनौती देते सचिन । सचिन ऐसा नाम है, जो कभी थकता नहीं । हार नहीं मानता । सचिन सिर्फ क्रिकेटर नहीं रहे । वो आदर्श हैं । मार्गदर्शक हैं । प्रेरक हैं । हम सबके लिए । किस तरह चौतरफा दबाव से उबरा जाता है । किस तरह मौन रहकर भी आलोचकों को जवाब दिया जा सकता है ।
वो अल्हड़ सी
मदमस्त नयनों वाली
न मेरी दोस्त है
न मेरी दुश्मन
पर उसके बिना
महसूस होता है
एक अजीब सा अधूरापन
उसकी छोटी सी आहट पर
सिहर उठता है तन-मन
रूक जाती हैं सांसें
बढ़ जाती है धड़कन
आखिर ये कौन सा रिश्ता है
ये कैसा है अपनापन

सोमवार, फ़रवरी 20, 2012

गुड बाय पंटर....


जीवट क्रिकेटर । बेहतरीन बल्लेबाज । सफल दिग्दर्शक । और अक्खर कप्तान । पंटर यानी रिकी पॉटिंग । रंगीन जर्सी में अब नहीं दिखेंगे । छोड़ दिया वनडे क्रिकेट । बतौर खिलाड़ी विरोधियों पर भारी पड़ते रहे । 2003 के वर्ल्ड कप का फाइनल । कोई भारतीय नहीं भूल सकता । ऑस्ट्रेलिया नहीं भूल सकता । टीम को समेटकर चलने वाला सेनापति । जिस टीम को जब चाहा रौंद दिया । खुद भी लड़ते रहे । साथियों को लड़ाई सिखाते रहे । लगातार दो बार वर्ल्ड चैंपियन कप्तान । जिसे किसी ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ने हासिल नहीं किया, उसे पंटर ने कर दिखाया । चैंपियंस ट्रॉफी । भारत में आकर जीत ले गया । जब अक्खर कप्तान ने जोश में होश गवां दिया था । शरद पवार का अपमान । बाद में माफी मांग ली । फिर मेलबर्न में अंगुली दिखाना । बहुत बुरा लगा था हमें । हालांकि इस सब से ज्यादा जलन । पंटर की बेहतरीन खेल और कप्तानी से । अक्सर उसकी रणनीति और खेल से हारने का रोष । सिर्फ भारतीय ही नहीं । हर विरोधी टीम । पंटर के हार से खुश होते थे । टेस्ट में कभी तेंदुलकर का चैलेंज करवाला खिलाड़ी । किसी का भी हर दिन एक जैसा नहीं होता । पंटर भी अछूता नहीं रहा । बुरे दिन देखे । भारत, इंग्लैंड, न्यूजिलैंड, हर टीम से हार । कप्तानी गई । फिर खेल पर बन आया । टीम से अंदर-बाहर । और फिर संन्यास की घोषणा । किसी दूसरे क्रिकेटर से तुलना नहीं कर सकता । क्योंकि रिकी पोंटिंग एक है । एक ही रहेगा । सबसे अलग । सबसे जुदा । नई पौध के मार्गदर्शक । हर मैच में याद आएंगे पंटर । भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हर मैच में याद आएंगे रिकी पोंटिंग ।

रविवार, फ़रवरी 12, 2012

उसकी हिम्मत को देख रहा हूं....

वो धीर से वीर की तरह लड़ती रही
वो हज़ार ज़ख्म सहकर भी मुस्कुराती रही
हर शिकवे को भूलकर बढ़ती रही
न राह को पता था न राहगीर को
जहां पर रूकी मंजिल रूठती रही....

कीस्मत उससे हर पल परीक्षा लेती रही
वो हारकर भी बाजी जीतती रही
ना उसे अहसास था, ना किसी और को
वो हर क्षण कहानी बनती रही....

मैंने उसे हिम्मत से लड़ते हुए देखा
उसे हर परिस्थिति से जूझते हुए देखा
नाम से पहचान तक बदलते देखा
और आज मैंने उसे,
बुलंदियों की ऊंचाई पर चमकते हुए देखा ।।

किसी को देखकर लिखा.....नाम नहीं लिख सकता....मजबूरी है...

शुक्रवार, जनवरी 13, 2012

सेना-सरकार आमने-सामने

सत्ता। सरकार। सेना। सियासत। सुप्रीम कोर्ट का शह। सेना और आईएसआई का गठजोड़। शह और मात का खेल। कुर्सी के लिए खिंचतान। राजनीतिक अस्थिरता। एकबार फिर तख्तापलट की आशंका। सैनिक शासन का डर। 64 साल का पाकिस्तान। 32 साल सेना का शासन। लोकशाही या सेनाशाही। संविधान पर सवाल। तीन बार तख्ता पलट। 6 जनरल का शासन। आर्मी की मनमानी। बेबस जनता। लाचार। विकल्पहीन। सबकुछ देख रही। सह रही है। राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे का पैर खिंच रही है। पावर पॉलिटिक्स में फंसा पाकिस्तान। भारत के लिए खतरे की घंटी। अयूब ख़ान- 1665 में पहला युद्धा। याहिया ख़ान- 1971 में दूसरा युद्ध। जिया-उल-हक़- भारत में आंतकी घुसपैठ की शुरुआत। परवेज मशर्रफ़- 1999 में कारगिल युद्ध। एकबार फिर बिखरता पड़ोसी। हो जाओ सचेत।