वो अल्हड़ सी
मदमस्त नयनों वाली
न मेरी दोस्त है
न मेरी दुश्मन
पर उसके बिना
महसूस होता है
एक अजीब सा अधूरापन
उसकी छोटी सी आहट पर
सिहर उठता है तन-मन
रूक जाती हैं सांसें
बढ़ जाती है धड़कन
आखिर ये कौन सा रिश्ता है
ये कैसा है अपनापन
मदमस्त नयनों वाली
न मेरी दोस्त है
न मेरी दुश्मन
पर उसके बिना
महसूस होता है
एक अजीब सा अधूरापन
उसकी छोटी सी आहट पर
सिहर उठता है तन-मन
रूक जाती हैं सांसें
बढ़ जाती है धड़कन
आखिर ये कौन सा रिश्ता है
ये कैसा है अपनापन
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