मंगलवार, अगस्त 25, 2009

मेरी मां.....

धुओं से तरबतर
चुल्हे को फूंकती
रोटी बेलती
और फिर उसे सेक कर खिलाती
भूख नहीं रहने पर भी
कौआ, मेना का कौर बनाती
मना करने पर
प्यार से डांटती
ज़िद करने पर
दुलार कर खिलाती
अब जब भूखा सो जाता हूं
तो सब कुछ याद आती है
उसका वो डांटना
अब रूलाती है
अब उससे दूर हूं
तो मेरी चिंता में
अपना ख्याल भी छोड़ दी है
हमेशा मेरे लिए
भगवान से दुआ मांगती है
हरेक पर्व और त्योहार में
पहले मुझे याद करती है
आज भी वह मुझे अपना
पांच साल का बच्चा समझती है
फोन पर ही सौ नसीहतें देती है
और फिर खाने के बारे में पूछती है
उसका यही पूछना
अब दिल को झकझोरती है
बहुत मुश्किल से
खुद को संभाल पाता हूं
उसकी याद को
सीने में दफ्न किये सो जाता हूं।।

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