शनिवार, अगस्त 01, 2009

हम कहाँ हैं ?

जब इच्छायें बढ़ने लगती है, भावनायें बहकने लगती है, लोगों के दिलों में अहसास सिमटने लगता है, इंसानियत दम तोड़ने लगता है, तब इंसान हो जाता है हैवान और शुरू करता है हैवानियत का खेल। हैवानों के इस घिनौने खेल को देखने के लिए सुरक्षा तंत्र मानो जैसे तैयार ही रहता है।

23 जुलाई की शाम कुछ ऐसा ही नज़ारा देखेने को मिला पटना के एक्जीवशन रोड में। जहां समाज के कुछ दरिंदों ने मिलकर एक महिला के साथ दरिंदगी का खेल खेला। भीड़-भाड़ वाले इस इलाके में एक महिला को सरेआम बेइज्जत किया जा रहा था। हज़ारो लोग तमाशबीन बने रहे। बेवस हो चुकी वह औरत चिखती रही, चिल्लाती रही, लेकिन किसी के कानो तक उसकी आवाज़ नहीं पहुंच पाई । किसी ने भी उसे बचाना मुनासिब नहीं समझा। खास बात तो ये है कि घटना स्थल से कुछ दूरी पर बने पुलिस चैकी पर तैनात उसके पहरेदारों को इसकी भनक लगी।

बस लोगों ने तो इसे मदारी के उस खेल की तरह समझा, जिसे देखने के लिए लोग कुछ देर रूकते हैं, तालियां बजाते हैं और खेल खत्म हो जाने पर हंसते हुए आगे बढ़ जाते है। इंसानो की बेहयाई इतने पर भी नहीं रूकी। तमाशा देखने वाले लोग भी कुछ समय के लिए मदारी बन गये। कुछ देर तक ऐसा लगा जैसे अफगानिस्तान से तालिबान चुपके से हमारे बीच आकर अपना काम कर रहा है। ऐसा लगा मानो शहर में प्रशासन नाम की कोई चीज़ ही नहीं है।

हमेशा की भांति खेल खत्म हो जाने बाद पुलिस अपनी कार्रवाई शुरू करती है। ख्रास बात तो ये है कि ऐसा खेल होते समय कानून भी अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध लेता है। सरकार भयमुक्त समाज बनाने का दावा कर रही है। नीतीश कुमार तो राज्य में सुशासन की बात कह रहे हैं। लेकिन दुशासनों के उपर उनका कोई बस नहीं चलता। समाज के ये दुशासन ही सरकार के दावों की पोल खोल रहे है। सरकार में बैठे बडे़-बड़े अधिकारी सिर्फ आश्वासन देते हैं। और अपनी जिम्मेवारियों का निर्वाह करते हुए अपने किसी कमजोर कर्मचारी पर कार्रवाई करते हैं और उसे तत्काल प्रभार से निलंबित कर दिया जाता है।

एक बार फिर एक महिला समाज के वहसी दरिंदो की अंधी जुनून का शिकार हो गई। लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या इंसानों का ज़मीर सचमूच खो गया है ? क्या लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं ? हमें तलाशना होगा अपने ज़मीर को और पूछना होगा अपने आप से कि हमारा कर्तव्य क्या है और हम कर क्या रहे है ?

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