बुधवार, अगस्त 26, 2009

स्वाइन फ्लू, सूखा और सरकार

देश संकट काल के दौर से गुजर रहा है। स्वाइन फ्लू कहर बरपा रहा है तो सूखा तड़पा रहा है। एक जान ले रहा है तो दूसरा जान लेने को आतुर है।

स्वाइन फ्लू की चपेट में देश में अभी तक करीब एक सौ लोगों की जाने जा चुकी है। हजारों लोग हॉस्पिटलाइज हैं। हर रोज नये नये जगहों पर इसके केस सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिक इसके लिए एंटी वैक्सिन जुटाने में लगे हैं। देशभर में जांच के लिए नये नये सेंटर खोले जा रहे हैं। एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार केवल अमेरिका में स्वाइन फ्लू से ९० हज़ार लोग मारे जायेंगे। स्वभाविक है इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा। ग्लोवलाइजेशन का दौर है। अमेरिका में जो होता है उसका असर सारी दुनिया में देखी जाती है। भारत भी उससे अछुता नहीं है। आर्थिक मंदी शुरू हुआ अमेरिका में। प्रभावित हुई पूरी दुनिया। भारत में भी लाखों लोग बेरोजगार हो गये। नौकरी छुटने का सिलसिला अभी तक जारी है। बेरोजगारी बढ़ रही है। खेती हो नहीं रही। क्योंकि सूखा पड़ा है। देश के १६१ जिले सूखे के चपेट में है। और भी बढ़ने की आशंका है। मंहगाई दिन पर दिन आसमान छू रही है। आम लोग परेशान हैं। लोग परिस्थिती के हाथों बेबस हो चुका है।

ऐसे में एक अच्छी बात है कि लोग हिम्मत नहीं हारे हैं। लोगों में विश्वास है कि सब कुछ ठीक हो जायेगा। आजाद हिन्दुस्तान ने ६७ का अकाल देखा है तो सुनामी और कुसहा का कहर भी। हर विपरित परिस्थिति में पार पाने की जज्बा है लोगों में। जिसकी बदौलत लड़ने को तैयार हैं। लड़ भी रहे हैं। और आगे भी लड़ेंगे।

इस सब के बीच सवाल उठता है कि सरकार कहां है और कर क्या रही है ? सरकार है और अपने हिसाब से जोड़-तोड़ मे जुटी है। लोगों के आश्वासन दे रही है। ये जानते हुए भी कि आश्वासनो से कुछ नहीं होगा। लेकिन नेताओं को पता है कि हिन्दुस्तान के लोग सपनो में जिते हैं और सपनो में जिने वाले उम्मीद पर ज्यादा विश्वास करते हैं। सो, सरकार इसका फायदा उठा रही है।

मंगलवार, अगस्त 25, 2009

मेरी मां.....

धुओं से तरबतर
चुल्हे को फूंकती
रोटी बेलती
और फिर उसे सेक कर खिलाती
भूख नहीं रहने पर भी
कौआ, मेना का कौर बनाती
मना करने पर
प्यार से डांटती
ज़िद करने पर
दुलार कर खिलाती
अब जब भूखा सो जाता हूं
तो सब कुछ याद आती है
उसका वो डांटना
अब रूलाती है
अब उससे दूर हूं
तो मेरी चिंता में
अपना ख्याल भी छोड़ दी है
हमेशा मेरे लिए
भगवान से दुआ मांगती है
हरेक पर्व और त्योहार में
पहले मुझे याद करती है
आज भी वह मुझे अपना
पांच साल का बच्चा समझती है
फोन पर ही सौ नसीहतें देती है
और फिर खाने के बारे में पूछती है
उसका यही पूछना
अब दिल को झकझोरती है
बहुत मुश्किल से
खुद को संभाल पाता हूं
उसकी याद को
सीने में दफ्न किये सो जाता हूं।।

सोमवार, अगस्त 24, 2009

क्या करेंगे जसवंत......

जसवंत सिंह बीजेपी के संस्थापक सदस्य रह चुके हैं। एनडीए की सरकार में बड़े-बड़े पद संभाले हैं। खुद को पार्टी का हनुमान कहते थे। लेकिन पार्टी ने उन्हें निकाल दिया। जिस तरह से पार्टी ने जसवंत को निकाला वह उसके लिए आशातित नहीं थे। उनको उम्मीद नहीं थी कि जिन्ना की बड़ाई करना इतना मंहगा पड़ेगा। इससे पहले आडवाणी भी जिन्ना को महान नेता बता चुके थे। लेकिन पार्टी उन्हें अध्यक्ष पद से हटा कर खानापूर्ति कर दी थी। लेकिन जसवंत को पार्टी को छोड़ना पड़ा।

जसवंत अच्छे खासे परिवार से आते हैं। पैसे की कोई कमी नहीं है। फौज की नौकरी छोड़ चुके हैं। शौकिया तौर पर राजनीति करते हैं। घोषणा कर चुके हैं कि सक्रिय राजनीति से संन्यास नहीं लेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि आगे क्या करेंगे जसवंत ? किसी दूसरी पार्टी में शामिल होंगे या फिर खुद नई पार्टी बनायेंगे ?

किसी को पार्टी से निकालना बीजेपी के लिए कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी कई नेता निकाले जा चुके हैं। पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे बलराज मधोक को पार्टी निकाल चुकी है। इसके अलावा आरिफ बेग, शंकर सिंह बाघेला, कल्याण सिंह, उमा भारती, मदन लाल खुराना जैसे दिग्गज को पार्टी बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। इसमें से किसी भी नेता की राजनैतिक अवस्था बहुत अच्छी नहीं है। सिर्फ शंकर सिंह बाघेला ही दूसरी पार्टी में शामिल होकर मंत्री बन पाये। पार्टी के स्टार प्रचारक रही उमा भारती और राम के नाम पर पार्टी के हिरो रहे कल्याण सिंह अभी भी राजनीतिक जमीन तलाश रहें है। कभी दिल्ली की राजनीति में के मजबूत स्तम्भ रहे मदन लाल खुराना की राजनीतिक जीवन समाप्त हो चुका है।
वैसे उनके सार्थन में पार्टी के वरिष्ट नेता सुधीन्द्र कुलकर्णी और अरूण शौरी खड़े हैं। सुधीन्द्र ने तो वकायदा पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। अरूण शौरी भी खुलकर सामने आ गये हैं। भारी अंतःविरोध के बीच हो सकता है कि पार्टी जसवंत के निष्काशन पर फिर से विचार करे। लेकिन जसवंत भी बिजेपी के बारे में मीडिया में बयान देना शुरू कर दिये हैं। इस बीच जसवंत सिंह अटल बिहारी वाजपेयी से भी मिल चुके हैं। ऐसे में जसवंत सिंह का अगला स्टेप क्या होगा, ये देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा।

क्या कंगारू का बादशाहत खत्म

ऐशेज ट्रॉफी हारने के बाद आस्ट्रेलिया टेस्ट रैंकिंग में चौथे पायदान पर आ पहुंचा है। इंग्लैण्ड ने आस्ट्रेलिया को एक के मुकाबले दो मैचों से हरा दिया। क्रिकेट के इतिहास में छह सालों के बाद ऐसा सामय आया है, जब आस्ट्रेलिया की टीम टेस्ट रैंकिग में इतने नीचे आया है। इससे पहले २००३ में आस्ट्रेलिया टेस्ट रैंकिंग में चौथे पायदान पर था। इंग्लैंड से पहले दक्षिण अफ्रिका और उससे पहले भारत ने कंगारूओं को उसी की धरती पर बुरी तरह पराजित किया था। ऐसे में अब कंगारुओं की श्रेष्ठता पर सवाल उठने लगा है।

ऐसा नहीं है कि आस्ट्रेलियाई टीम पहली बार ऐशेज सीरीज में हारी है। इससे पहले २००५ में भी वह हार चुकी है। उस समय भी कंगारुओं के बारे में ऐसा ही कहा गया था। लेकिन कुछ ही दिनो में जबरदस्त वापसी की और वर्ल्ड चैंपियन बना।

हलांकि तब और आज के समय में बहुत कुछ बदल चुका है। उस समय आस्ट्रेलिया अपने सर्वश्रेष्ठ टीम के साथ खेल रहा था। टीम में हेडेन, गिलक्रिस्ट, ब्रेड हॉग, एंड्रयु साइमंड्स, ग्लेन मैक्ग्रा और शेन वार्न जैसे विश्व के श्रेष्ठतम क्रिकेटर खेलते थे, जो अपने अनुभव और कलात्मक बल्लेबाजी की बदौलत खेल का रुख तय करते थे। लेकिन अब समय बदल चुका है। क्रिकेट आस्ट्रेलिया से सभी दिग्गज संन्यास ले चुके है। टीम में रिकी पोंटिंग के साथ देने वाला कोई बचा नहीं है। क्लार्क और हसी भले ही अच्छी बल्लेबाजी करते हैं लेकिन उन में न तो गिलक्रिस्ट और साइमंड्स जैसे अनुभव है और न ही हेडेन जैसी आक्रमकता।

दूसरी तरफ दक्षिण अफ्रिका, भारत और श्रीलंका के खिलाड़ी अच्छे फॉर्म में खेल रहे हैं। बांग्लादेश भी लागातार दो सीरीजों में वेस्टेइंडीज और जिम्बाब्वे को हरा कर अपनी क्षमता साबित कर चुका है। ऐसे में आस्ट्रेलिया को अपनी बादशाहत कायम करने में भारी मशक्कत करना पड़ेगा। जो फिलहाल बहुत मुश्किल दिख रहा है....वैसे क्रिकेट में कुछ भी असंभव नहीं है।

शनिवार, अगस्त 15, 2009

भूखा गाँव

आजाद हिन्दुस्तान का एक अभागा गांव है रातू बिगहा। जो बिहार के जहानाबाद जिले में घोषी प्रखंड है। आजादी के 62 साल के बाद भी इस गांव के लोगों को रोटी नसीब नहीं हो रही है। इस गांव में लोगों के घर में कई दिनों से चुल्हा नहीं जला है। जिंदगी के लिए गरीबी से जंग लड़ते इस गांव के लोग अब रोटी के अभाव में दम तोड़ने लगे हैं। एक तरफ देश आजादी का जश्न मनाने की तैयारी में लगा था और दूसरी तरफ इस गांव के लोग अपने परिजन के शव को श्मशान घाट तक पहुंचाने की तैयारी कर रहे थे। इस गांव में पिछले एक हफ्ते में भूख से तीन लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन किसी को इसकी परवाह नहीं है। दलितों और गरीबों के इस बस्ती के लोगों के लिए सरकार ने बीपीएल कार्ड तो बनबा दियाए पर लोगों को आज तक अनाज नहीं मिला। इन लोगों की रोटी से नेता अपना पेट भर रहे हैं।
सरकार गरीबी मिटाने के लिए कई तरह की योजनाएं बना रही हैए लेकिन जहानाबाद के इस गांव में गरीब मिट रहे हैं। शुरू में जब लोगों ने इसकी शिकायत संबन्धित अधिकारी से की तो कोई देखने के लिए नहीं आया। अब जब बात लोगों की मौत तक पहुंच चुकी है तो बीडीओ साहब भी इसकी टोह लेने के लिए गांव तक पहुंचे है। और अनाज नहीं देने वालों के साथ सख्ती से कार्रवाई का आश्वासन दे रहे हैं। खैर क्या कार्रवाई होगी ये सभी लोग भलीभांति जानते हैं। कहते हैं कि दर्द का हद से गुजर जाना है दवा होना। और अपने दर्द को दवा बना चुके इस गांव के लोग आज भी स्वतंत्रता का इंतजार कर रही है। ये 62 साल के आजाद हिन्दुस्तान की नंगी तस्वीर हैए जहां लोगों के लिए रोटी आज भी एक सवाल बना हुआ है। ये गांव हमें अपनी सच्ची आजादी का आइना दिखा रही है। गांव की बुढी आंखे देश के नेताओं से सवाल पूछ रही है कि क्या यही दिन देखने के लिए देश को आजाद किया गया था। क्या गांधीजी ने जो आजादी का सपना देखा था क्या उसकी यही हकीकत है ?


रविवार, अगस्त 02, 2009

राखी का स्वयंवर

राखी का स्वंयवर हो गया। साथ ही पूरा हो गया वो नाटक जो शादी के नाम पर एक महिने से खेला जा रहा था। राखी ने एक एनआरआई लड़का इलेष पारूजनवाला को काबिल समझी। और इसी के साथ लाखों लोगों की उत्सुकता भी पूरी हो गई , जो इस प्रोग्राम को देखने के लिए टीवी पर आंख गड़ाये बैठे रहते थे।


अब तक के इतिहास में शायद यह पहली घटना होगी, जब कोई लड़की शादी करने के लिए खुद एक महिने तक लड़कों का इंटरव्यू लेती रही। लड़कों ने भी उसे इंप्रेस करने के लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाये। यह इंडिया का सच है। और इंडिया के बेटी का सच भी। बाजार में खड़े आम लोगों ने भी इसे हाथों हाथ लिया।

राखी इस नाटक की तुलना सीता की स्वयंवर से करती है। और खुद को सीता से। खैर ये तो बोलने की आजादी है। खुद को किसी से तुलना करने पर कोई पाबंदी नहीं है। किसी को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए।

अब सवाल उठता है कि आखिर क्यों एक लड़की खुद ऐसा करती है, वो भी सरेआम टीवी पर। इसको समझने के लिए जरा अतित में जाना होगा। राखी बार डांसर हुआ करती थी। वह गुमनाम की जिंदगी जी रही थी। लोगों ने उसका नाम तब जाना, जब वह मिका पर किस करने का केस किया था। इससे दोनो को फायदा मिला। मिका को भी लोग जानने लगे और राखी को भी। मीडिया वालों ने भी राखी का भरपूर साथ दिया। फिर तो राखी पब्लिीसिटी ब्रांड बन गई। सिर्फ एक घटना के बाद बार डांसर राखी , टीवी का कामऊ चेहरा बन चुकी थी। टीवी में काम करने की तमन्ना रखने वालों से लेकर टीवी पर कार्यक्रम बनाने वालों तक, सभी राखी का सहारा लेने लगे। अभिषेक नाम का माॅडल जो वर्षो से अपनी पहचान बनाने में नाकाम रहा था, वह भी राखी के सहारे टीवी का जानामाना नाम हो गया। फिर नच बलिये नामक रियलिटी शो को हिट कराने में राखी का भरपूर सहयोग रहा। राखी पब्लिसिटी के लिए कुछ भी कर सकती है। तो ऐसे में लगता है कि कहीं ना कहीं ये पब्लिक स्टंट था।

खैर अब इलेष को भी लोग जान गये हैं। दोनो का इंगेजमेंट तो हो गया , लेकिन शादी अभी नहीं हुई है। अब देखना होगा कि शादी कब होता है। इसके लिए इस प्रोग्राम के दर्षकों को थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा। क्योंकि हो सकता है कि राखी अपनी शादी तब करे जब उसकी पब्लिसिटी की ग्राफ में कुछ गिरावट होने की आषंका हो।

शनिवार, अगस्त 01, 2009

हम कहाँ हैं ?

जब इच्छायें बढ़ने लगती है, भावनायें बहकने लगती है, लोगों के दिलों में अहसास सिमटने लगता है, इंसानियत दम तोड़ने लगता है, तब इंसान हो जाता है हैवान और शुरू करता है हैवानियत का खेल। हैवानों के इस घिनौने खेल को देखने के लिए सुरक्षा तंत्र मानो जैसे तैयार ही रहता है।

23 जुलाई की शाम कुछ ऐसा ही नज़ारा देखेने को मिला पटना के एक्जीवशन रोड में। जहां समाज के कुछ दरिंदों ने मिलकर एक महिला के साथ दरिंदगी का खेल खेला। भीड़-भाड़ वाले इस इलाके में एक महिला को सरेआम बेइज्जत किया जा रहा था। हज़ारो लोग तमाशबीन बने रहे। बेवस हो चुकी वह औरत चिखती रही, चिल्लाती रही, लेकिन किसी के कानो तक उसकी आवाज़ नहीं पहुंच पाई । किसी ने भी उसे बचाना मुनासिब नहीं समझा। खास बात तो ये है कि घटना स्थल से कुछ दूरी पर बने पुलिस चैकी पर तैनात उसके पहरेदारों को इसकी भनक लगी।

बस लोगों ने तो इसे मदारी के उस खेल की तरह समझा, जिसे देखने के लिए लोग कुछ देर रूकते हैं, तालियां बजाते हैं और खेल खत्म हो जाने पर हंसते हुए आगे बढ़ जाते है। इंसानो की बेहयाई इतने पर भी नहीं रूकी। तमाशा देखने वाले लोग भी कुछ समय के लिए मदारी बन गये। कुछ देर तक ऐसा लगा जैसे अफगानिस्तान से तालिबान चुपके से हमारे बीच आकर अपना काम कर रहा है। ऐसा लगा मानो शहर में प्रशासन नाम की कोई चीज़ ही नहीं है।

हमेशा की भांति खेल खत्म हो जाने बाद पुलिस अपनी कार्रवाई शुरू करती है। ख्रास बात तो ये है कि ऐसा खेल होते समय कानून भी अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध लेता है। सरकार भयमुक्त समाज बनाने का दावा कर रही है। नीतीश कुमार तो राज्य में सुशासन की बात कह रहे हैं। लेकिन दुशासनों के उपर उनका कोई बस नहीं चलता। समाज के ये दुशासन ही सरकार के दावों की पोल खोल रहे है। सरकार में बैठे बडे़-बड़े अधिकारी सिर्फ आश्वासन देते हैं। और अपनी जिम्मेवारियों का निर्वाह करते हुए अपने किसी कमजोर कर्मचारी पर कार्रवाई करते हैं और उसे तत्काल प्रभार से निलंबित कर दिया जाता है।

एक बार फिर एक महिला समाज के वहसी दरिंदो की अंधी जुनून का शिकार हो गई। लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या इंसानों का ज़मीर सचमूच खो गया है ? क्या लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं ? हमें तलाशना होगा अपने ज़मीर को और पूछना होगा अपने आप से कि हमारा कर्तव्य क्या है और हम कर क्या रहे है ?