वो धीर से वीर की तरह लड़ती रही
वो हज़ार ज़ख्म सहकर भी मुस्कुराती रही
हर शिकवे को भूलकर बढ़ती रही
न राह को पता था न राहगीर को
जहां पर रूकी मंजिल रूठती रही....
कीस्मत उससे हर पल परीक्षा लेती रही
वो हारकर भी बाजी जीतती रही
ना उसे अहसास था, ना किसी और को
वो हर क्षण कहानी बनती रही....
मैंने उसे हिम्मत से लड़ते हुए देखा
उसे हर परिस्थिति से जूझते हुए देखा
नाम से पहचान तक बदलते देखा
और आज मैंने उसे,
बुलंदियों की ऊंचाई पर चमकते हुए देखा ।।
किसी को देखकर लिखा.....नाम नहीं लिख सकता....मजबूरी है...
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