गुरुवार, जनवरी 21, 2010

नस्लवादी आस्ट्रेलिया


आस्ट्रेलिया नस्ली हिंसा की आग में जल रहा है। हर दिन वहां विदेशियों पर हमले हो रहे हैं। साल की शुरूआत होते ही दो भारतीयों को जान से मार दिया गया। आधा दर्जन लोगों पर जानलेवा हमले हुए हैं।
          आस्ट्रेलियाई मानवता को ताक पर रखकर नस्लवाद के पीछे पड़ गये हैं। नस्लवाद के जुनून में अंधे होकर वे इतने क्रूर हो गये हैं कि जान लेने को आतुर हैं। जहां भी मौका मिलता है विदेशियों पर निर्ममतापूर्वक हमला कर देते हैं। घृणा का रूप इतना विकराल है कि इंसानियत शर्मसार हो जाती है। लोगों को जिंदा जला दिया जाता है। चाकुओं से गोद-गोदकर हत्या कर दी जाती है।
    इस तरह घटनाओं में पिछले साल बेहतासा वृद्धि हुई। साल 2009 में एक सौ भारतीयों को जान से मार दिया गया, जबकि 2008 में 17 भारतीयों को मौत के घाट उतार दिया गया। वहां भारतीयों के साथ-साथ दूसरे देशों के लोगों को भी शिकार बनाया जाता है। जिसमें नेपाल, अफ्रिका और यूनान के नागरिक प्रमुख हैं।
       वहां सिर्फ छात्रों या कामगारों पर ही हमले नहीं होते, बल्कि खिलाड़ियों के साथ भी अभद्रता की जाती है। क्रिकेट खेलने गये भारतीय खिलाड़ी जब फिल्डिंग कर रहे थे तो दर्शकों ने उनके उपर इंटा-पत्थर फेंका था। इतना ही नहीं, श्रीलंका की क्रिकेट टीम जब आस्ट्रेलिया पहुंची तो किसी ने मुथैया मुरलीधरन के मुंह पर अंडा फेक दिया था।
         इतना कुछ हो जाने के बावजूद आस्ट्रेलिया की सरकार मौन है। बेशर्मी का आलम तो यह है कि हिंसा रोकने के बजाय सरकार इसे नस्ली मानने से इंकार कर रही है। वह भारत पर ही मामला तूल देने का आरोप लगा रही है। लेकिन सच तो ये है कि आस्ट्रेलिया का इतिहास नस्लवाद की बर्बरता का गवाह रहा है। दरअसल वहां के बहुसंख्य लोग यूरोप से आये हैं। आस्ट्रेलिया आने के बाद उनलोगों ने वहां के मूल निवासी, जो एबोरिजनल थे, उनका दमन करना शुरू किया। यहां तक की उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया। 1965 तक तो उन्हें वोट देने का अधिकार तक नहीं था। और आज भी वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
      इन तमाम बातों से साफ है कि इस स्थिति में वहां की सरकार से न्याय की उम्मीद करना व्यर्थ है। ऐसे में भारत सरकार को ही यथाशिघ्र ठोस उपाय सोचना होगा और चिर निद्रा में सो रही विश्व शांति समुदाय को जगाना होगा। जिससे आस्ट्रेलिया पर दवाब बने। अन्यथा इस तरह के हमले जारी रहेंगे और लोग नस्लवाद के धमनभट्ठी में जलते रहेंगे।


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