मंगलवार, जनवरी 26, 2010

मैं गणतंत्र हूं

साठ साल का बूढ़ा


शून्यता में भटकता

कराहता, पुकारता

बीच राह पर पड़ा हूं

निशक्त बन निहारता

असमर्थता की भाव से

लोग मुझे देखता

आन, बान, शान हूं

मैं देश का अभिमान हूं

गण का मैं तंत्र हू

पर गन वाले संभालता

अभ्रदता के साथ जब-जब

वो मुझसे खेलता

तब ये दर्द बहुत सालता ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें