सोमवार, जनवरी 18, 2010

नेताजी का क्या कहिन

क्या से क्या हो गया। कुछ ही पलों में बहुत कुछ बदल गया। अपने बेगाने हो गये। नेता हैं। प्रोफेशन ही ऐसा है कि ये सब होता रहता है। नेता किसी एक का नहीं होता। वो कब किसका हो जाय, खुद को भी पता नहीं रहता। सब कुछ अचानक होता है। पलभर में दोस्त दुश्मन बन जाते हैं, दुश्मन दोस्त बन जाता है। अलग होने के बहाने कई होते हैं। कोई निकाल दिये जाते हैं. कोई खुद निकल जाते हैं।  कुछ ऐसा ही हुआ नेताजी के साथ।
           सब कुछ लुटने के बाद नेताजी को अब समाजवाद याद आया है। इतने दिनों तक परिवारवाद में उलझे हुए थे। अपनी गलती मान रहे हैं। समाजवादियों को इकट्ठा करेंगे। और इसकी शुरूआत वो क्षत्रिय चेतना रथ को हरी झंडी दिखाकर करेंगे। नेताजी ने पार्टी के लिए क्या कुछ नहीं किया। बड़े-बड़े नेता तक को गरिया दिया। बड़ी-बड़ी हस्तियों को पार्टी से जोड़ा। मुम्बई से लाकर चुनावी मैदान में खड़ा किया। पैसा के साथ-साथ भीड़ भी जुटाई। लेकिन एक बार सच क्या बोल दिये अपने ही बेगाने हो गये। जिसको जो मन हुआ बोलने लगे। नेताजी खुद बड़बोलेपन के लिए जाने जाते हैं। उन्हीं के खिलाफ कोई अनाप शनाप बोले तो वो कैसे सहन कर सकते। वो भी जब कोई अपन हो तो टीस ज्यादा होती है। यही हुआ नेताजी के साथ। नेताजी कोई ऐरे-गेरे तो हैं नहीं। क्लिंटन से लेकर शहंशाह तक के किचन में अपनी पहुंच रखते हैं। किसी का रौब कैसे बर्दश्त करते। सो आव देखे ना ताव दे दिया इस्तीफा। मनाने की बहुत कोशिश की गई। पर वो अपने जिद पर अड़े रहे। और आखिरकार इस्तीफा मंजूर कर लिया गया।
           महीनों से जारी किचकिच फिलहाल तो रूक गया है। लेकिन नये समाजावाद के बहाने नेताजी की अगली राजनीतिक पहल के बारे में कयास शुरु हो गया है। नेताजी रंगीन मिज़ाज आदमी हैं। फिल्मी हस्तियों से ज्यादा संपर्क में रहते हैं। जुगाड़ लगा चुके हैं। फिल्मों में काम भी मिल चुका है। हो सकता है बुढ़ापे में कुछ दिन माया नगरी में ही बिताये। कोई बात नहीं। यहां के महफिल में भी किस्मत आजमा के देख लीजिए। हमारा भी शुभकामना आपके साथ है।

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