बुधवार, जनवरी 06, 2010

आंकड़ों का खेल

पिछले कुछ दिनों में बिहार में दो नये आंकड़े आये है। दो अलग-अलग क्षेत्र में। एक बिहार की गरीबी को दिखा रही है तो दूसरे में बिहार को सबसे तेजी से विकास करने वाला राज्य बताया है। लेकिन इस सब के बीच आम जनता कहां हैं। जहां है परेशान हैं।
सर्दी का सितम जारी है। हाड़ कंपकंपा देने वाली ठंड है। कनकनी ऐसी की कलेजा बाहर निकल जाय। ऐसे में भी हजारों लोग सड़क के किनारे रात काटने को मजबूर हैं। लोगों की समस्यायें सिर्फ इतनी ही नहीं है। और भी कई वाजिब कारण है। आंकड़ें भी है। हकीकत भी। महंगाई चरम पर है। सुखाड़ के कारण खेत खाली है। अपने साथ-साथ पशुओं की भी चिंता है। हजारों लोगों की नौकरी छुटी हुई है। जो लोग राज्य से बाहर रहकर रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं वो भी खुश नहीं हैं। पंजाब में पुलिस पीट रही है तो दिल्ली की मुख्यमंत्री उलहाना दे रही हैं। ये स्थिती कमोबेश सभी दूसरे राज्यों का भी है। इसके साथ आंकड़े भी बताते हैं कि सब कुछ ठीक ठाक नहीं है।
यदि सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट को देखें तो उसमें भी स्थिती अच्छी नहीं है। तेंदुलकर की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 75।14 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रही है। आम लोग त्रस्त है।
लेकिन राज्य विकास कर रही है। सरकार खुश है। सरकार इसे साबित करने के लिए नये आंकड़े का सहारा ले रही है। जिसमें कहा गया है कि बिहार का विकास दर 11.03 फीसदी है। यानी देश के विकास दर (8.49) से करीब तीन फीसदी ज्यादा। जबकि देश का सबसे ज्यादा विकसित राज्य गुजरात से महज 0.2 प्रतिशत कम।खैर, जमीनी तौर पर इतनी हकीकत कहीं नहीं दिखती है जिससे इस बात की पुष्टि हो सके कि विकास दर में बिहार दूसरे स्थान पर है। ऐसे में लगता है कि या तो विकास राज्य के महज 25 प्रतिशत लोगों में हुआ है या कागजी है। लेकिन सरकार ढ़िढ़ोरा पिट रही है। कुछ महीनें बाद चुनाव होने वाला है। और वो चुनाव में इस बात को भुनाना चाहते है। और इसी की कोशिश में लगे हैं। क्योंकि नेता जानते हैं कि भूखा सोने को भी तैयार है ये देश मेरा आप परियों का उसे ख्वाब दिखाते रहिये।

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