सोमवार, मार्च 16, 2009

प्यार की हार

चांद मोहम्मद और फ़िज़ा की कहानी एक ऐसी मोहब्बत की दास्तां हैं, जो जज्बात और जुनून में अंधे होकर जल्दीबाजी में लिया गया फ़ैसला बनकर सामने आया है। उनकी करतूत प्यार के नाम पर न मिटनेवाला काला धब्बा बन गया। जो लोग चंद महिनो पहले इन दोनों के बारे में क़ासिदे गढ़ते थे आज वह बेतुका दलिलें देने पर मजबूर है। अपने अपने व्यवहारिक जीवन में महत्वपूर्ण जिम्मेवारियों का निर्वहन करते वक्त इन दोनो ने इश्क की नदानी में एक ऐसा गाथा गढ़ गया जो प्रेम विरोधी ताकतों के लिए व्रहृास्त्र बन गया। इन दोनो की प्रेम कथा एक ऐसे मोड़ पर जा पहुंची है जहां पर नफरत, काली कोठरी में अंधरों की तरह चारो तरफ फैली हुई है। यह किसी को उम्मिद नहीं था कि जो समाज की रूढ़िवादी विचारधारा को तोड़ दुस्साहसिक कार्य करने का हिम्मत दिखाया, वह धैर्यता की परीक्षा में इतनी जल्दी हार मान जऐगा।
इन दोनों ने मीरा और कन्हैया की प्रेम को नये रूप में सामने लाया। कानूनी दांव पेंच से बचने के लिए अपना धर्म भी बदला। घर भी छोड़ दिया। सारे रिश्ते नाते तोड़ लिया। पिता की संपत्ति से भी हाथ धो लिया। उपमुख्यमंत्री की कुर्सी भी गंवा दिया। पर अफसोस कि चंद महिनो के बाद इनका इमान भी बदल गया। इन दोनो के बीच तक़रार इस कदर घर कर गया कि बात तालाक तक जा पहुंची। चांद मोहम्मद लंदन में है, जबकि फ़िजा भारत में। चांद ने फ़िज़ा को टेलिफॉन से तलाक़ दे दिया है। परन्तु जिस धर्म में परिवर्तित होकर इन्होंने शादी की है, वह धर्म टेलिफोन के ज़रिये तलाक की इजाज़त नहीं देता है। वैसे कुछ बुद्धिजीवियों का तो यहां तक कहना है कि जिस तरह से इन दोनो ने धर्म बदला था और जिस मक़सद के लिया बदला था, वह जायज़ नहीं था। जो भी हो। पर ये दोनो प्यार के जिस धर्म के लिए अपनी कहानी बनाई उसको बदनाम कर दिया।
फिलहाल ये दोनो प्रेम पथ से विचलित होकर नफरत की उस अंधेरी खाई की तरफ अपना कदम बढ़ा दिये हैं जहां एक शराब पी कर ज़िंदगी काट रहा है तो दूसरा नींद की गोली खा कार ज़िंदगी को सदा के लिए काटना चाह रहा है। ऐसी विषम परिस्थिति बनने के लिए इन दोनो में गलती किसकी है, यह तो वे ही बेहतर जानते होंगे। गलती जिसकी भी हो। पर हार तो प्यार की ही हुई है। और शायद प्यार करने वाले दोनो को कभी माफ़ नहीं करेंगे।

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