शनिवार, मार्च 14, 2009

लोक नोट तंत्र

खादी का कुर्ता और धोती पहने
कुछ शख्स को गांव में देख
लोगों ने सोचा
शायद चुनाव का समय आ गया है,

उन्हें देखने के लिए भीड़ बढ़ने लगी
नेताजी के होठों पर मुस्कान उभरने लगी
पर शायद लोग कर रहे थे
इसी दिन का इंतजार
करने लगे गुस्सों का इजहार
लगा दिया प्रश्नों का बौछार
पूछा- पांच साल बाद क्या करने आये हो ?
क्या हमें फिर से बेवकुफ बनाने आये हो ?
हम तुम्हें नहीं जानते
तुम्हारी पार्टी को नहीं पहचानते
लोगों के सब्र का बांध टुटने लगा
धीरे धीरे माहौल बिगड़ने लगा
और नेताजी मुर्दावाद का हल्ला होने लगा

उधर नेताजी का पी ए लोगों को समझाने लगा
उन्हें बहलाने, फुसलाने लगा
फिर बोला
नेताजी को अपनी गलती का अहसास हो गया है
वह पश्चाताप करने आये हैं
तुम सब के लिये खास तोहफा लाये हैं
गांव में बिजली लगेगी, स्कूल बनेगा
सड़क भी बनेगी, सामूदायिक घर भी बनेगा
इस बार हम सिर्फ वादा नहीं करते हैं
साथ में प्रमाण भी लाये हैं
एक एक कर आओ
अपना हिस्सा लो
और नेताजी को आखिरी मौंका दो
और उन्हें भारी मतो से जीताओ,

लोग पुरानी बातों को भूलने लगे
अपना हिस्सा पहले लेने के लिये
आपस में ही लड़ने लगे
और फिर हाथों में रूपयों का नोट लेकर
नेताजी जिंदाबाद का नारा लगाने लगे ।।

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