शनिवार, मार्च 07, 2009

बापू के नाम पर ......


एक बार फिर गांधी चर्चा में हैं। एक अमेरिकी के कारण। संचार माध्यमों के जरिये। लोगों तक फिर गांधी पहुंचे हैं। सरकार को भी उनका ख्याल आया है। बापू की घड़ी, चप्पल, चश्मा, थाली और बाटी निलाम हो चुकी है। भारत सरकार की तमाम कोशिशें बेकार हो गई। सरकार ने कई तरह के प्रयत्न किया, कि बापू की धरोहर उसे मिल जाय, पर ऐसा नहीं हुआ। और अंततोगत्वा एक अमेरिकी ओटिस ने बापू की उस बहुमुल्य चिजों को नीलाम कर दिया। लेकिन इस सब के बीच गांधी के जरिये अमरिकी जेम्स ओटिस ने भारत सरकार को जो दृश्य दिखाया वह वाकइ शर्मशार कर देने वाली है। उन्होंने गांधी के चश्मे से सरकार को दिखा दिया कि भले ही बापू की समानो को घर लाने के लिए आप जद्दोजहद कर रहें है, पर उनके आदर्शो को आप बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। पिछले साठ साल में आपने जब उनकी सपनों को पुरा नहीं कर सके तो चप्पल और चश्मा लेकर क्या करेंगे। बापू का सपना था कि लोक हिंसा से दूर रहे। सब के पास समान अधिकार हो। देश से गरीबी हटे। परन्तु अभी भी देश के एक चौथाई जनसेना के पास आधारभूत जरूरतों का अभाव है। खैर जो भी हो। बापू के इस देश में पैसे वालों का भी कमी नहीं है। नीलामी के बजार में एक शख्स सामने आया और वह बापू के अनमोल धरोहरों को अपन घर वापिस ले आया। सब खुश हैं। सरकार ने भी कुछ हद तक राहत की सांस ली। अब कुछ दिनों तक यह चर्चा के विषय होगा। इसे किसी म्युजीयम में रख दिया जायेगा। इसे देखने के लिये लोगों की भीड़ लगेगी। फिर धीरे धीरे सब इसे भूल जायेंगें। वैसे इससे पहले बापू का विचार भी बजार में बिक चुका है। फिल्मों के माध्यम से। लोगों ने हाथो हाथ लिया। लेकिन सिर्फ दिल बहलाने के लिये। दिल बहल जाने के बाद लोगों ने इसे किसी कोने में फेंक दिया । कोइ इसे अपने व्यवहारिक जीवन में नहीं उतार सका। बापू कहते थे अहिंसा परमो धर्म। लकिन अब तो अर्थ ही धर्म हो चुका है। परिणामस्वरूप चारो तरफ हिंसा ही हिंसा है। घर में घरेलू हिंसा। महिला हिंसा। समाज में जातीय हिंसा। देश में क्षेत्रीय और भाषीय हिंसा। और संसार में आतंकी हिंसा। पर इन सब के बीच कहीं न कहीं बापू की अहिंसा भी है। पर दबी हुई है। और बाहर तब आती है, जब मुम्बई और दिल्ली में हमला होता है। हमले के बाद लोग बापू को याद करते हैं। उनकी अहिंसा को याद करते हैं। और फिर हाथ में मोमबत्ती लिये सड़को पर निकल जाते हैं।

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