सोमवार, नवंबर 22, 2010

मां की याद

धुओं से तरबतर
चुल्हे को फूंकती
रोटी बेलती
और फिर उसे सेक कर खिलाती
भूख नहीं रहने पर भी
कौआ, मेना का कौर बनाती
मना करने पर
प्यार से डांटती
ज़िद करने पर
दुलार कर खिलाती
अब जब भूखा सो जाता हूं
तो सब कुछ याद आता है
उसका वो डांटना
अब रूलाता है.....

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