गुरुवार, सितंबर 09, 2010

नक्सली हमले के बाद

आदरणीय मुख्यमंत्री जी,


जिन नक्सलियों का आप पैरोकार बने फिरते थे, उसी ने आपके सीने को छलनी कर दिया है। आपके 8 जवानों की हत्या कर दी। सात को तो मौत से लड़ने का मौक़ा भी दिया। लेकिन उन बेरहमों ने एक को तो तड़पा-तड़पा कर मार डाला। और आप बेबस, लाचार, सबकुछ देख और सुनते रहे हैं।

आप तो सरकार हैं। एक उम्मीद। एक विश्वास और एक आस। लेकिन आपने क्या किया। क्या आपके पास पांच दिनों का समय कम था। जब एक जावन की लाश मिली तब आप वार्ता के लिए आह्वान करते हैं। कौन सी रणननीति आप बना रहे हैं....। चार अगवा जवान के परिजन आपके चौखट पर गुहार लगाते रहे। कोई सिंदूर की दुहाई देती रही। कोई बुढ़ापे के सहारे का तो बच्चे अपने पिता को बचाने की भीख मांगते रहे। आप देखते और सुनते रहे। लेकिन कुछ भी नहीं कर सके। एक परिवार उजर चुका। एक महिला विधवा चुकी। तीन बच्चे अनाथ हो चुके। और तब जाकर आपकी निंद खुली ।

मुख्यमंत्री जी, वो भी किसी के बेटे थे। किसी के पति। किसी के पिता और किसी के भाई। कितनी उम्मीदें थी उनसे उनके परिवार का। क्या जवाब है आपके पास। क्या लौट सकेगी उन घरों की खुशियां। पति का प्यार और पिता का साया। आख़िर क्या गलती थी उन पुलिस जवानों की। वो तो आप पर भरोसा कर देश को बचाने चला था। लेकिन ख़ुद मिट गया। क्यों नहीं कुछ कर सके। कहीं आपने ये सोच कर तो नहीं ठिठक गये कि कुछ पहले दिल्ली में इन्हीं ख़ूनी नक्सलियों की पैरोकारी कर आये थे या कुछ और बात है....।

आपके सुशासन का क्या हो गया। जो अपने ही जवानों की जान नहीं बचा सका। ऐसा नहीं है कि नक्सलियों ने पहली बार किसी बड़ी घटना को अंजाम दिया है। आपके सुशासन में ही नक्सलियों ने कोरासी गांव को जला दिया था। कई लोग मारे गये थे। वो आम जन थे। लेकिन इस बार तो पुलिस..।

वो तो शहीद हो गये। हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गये। लेकिन आपके सफेद दामन पर जो लाल छिंटे पड़े हैं, क्या वो मिट पायेंगे। मुख्यमंत्री जी, चुनाव सर पर है। किस मुंह से आप उन आठ जवानों के गांव में वोट मांगने के लिए जायेंगे ?

                                                                                                 ।।   एक जन ।।

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