गुरुवार, सितंबर 23, 2010

हाईटेक बाबा

पिछले कुछ दिनों में साईं बाबा का जबर्दस्त क्रेज बढ़ा है। आधुनिकता के दौर में अपने आप को नास्तिक ‎कहलाने से बचने वालों के लिए साईं बाबा एक बड़ी खोज हैं। रूढ़ीवादी समाज को ठेंगा दिखाने वाले ‎विद्रोहियों का आदर्श हैं। उन पर विश्वास रखने वालों के लिए साईं बाबा भगवान हैं। जिसकी बड़ी तादाद है। ‎और दिन पर दिन बढ़ती ही जा रहा है। ‎
                  साईं बाबा की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि वो अपने भक्तों को किसी तरह के बंधन में नहीं ‎बांधते। जाति, धर्म कोई मायने नहीं रखता। रूढ़ीवादी भगवान से बिल्कुल अलग। ज्यादा पूजा-पाठ, प्रपंच ‎करने की कोई ज़रूरत नहीं। सीडी चला कर आरती कर लो, बाबा प्रशन्न हो जायेंगे। गेंदा, बेली, आक, ‎धथूर कुछ नहीं चाहिए। बाबा बिल्कुल मॉडर्न हैं। बाबा को गुलाब का फुल सबसे ज्यादा पसंद है। लाल ‎गुलाब, प्यार और विश्वास का सबसे बड़ा प्रतीक। भक्तों को भी एक फुल से कई काम.....। पुराने ढ़र्रे की ‎कोई बंदिस नहीं है कि स्नान करो, धोती पहनो तब पूजा करो। यहां कपड़ा कोई मायने नहीं रखता। जिंस ‎पैट, टी-शर्ट, मिनी स्कॉर्ट....सब चलता है। बस मन शुद्ध रहना चाहिए। पंडीत जी भी मिलेंगे फर्राटेदार ‎अंग्रेजी बोलने वाले। कोई दिक्कत नहीं होगी। शायद इसीलिए बाबा के फैंस की संख्या दिन पर दिन बढ़ती ‎जा रही है। ‎
                शीरडी के साईं बाबा बहुत फेमस हैं। लेकिन पटना के कंकड़बाग का साईं बाबा भी बड़े शहर ‎वालों को टक्कर देने की स्थिति में अब पहुंच चुके हैं। पांच साल पहले जहां इक्का दुक्का लोग दिखते थे। ‎वहां अब तो बाबा का दर्शन भी मुश्किल से होता है। बाबा बहुत बीजी रहने लगे हैं। ख़ासकर गुरुवार के ‎दिन। इलाके भर का भक्त पहुंचते हैं। मानों जैसे बाबा इसी दिन सब की मुराद पूरी करते हो। स्कूल और ‎कॉलेज के बच्चे तो बंक मार जाते है। भीड़ का आलम ये कि कभी-कभी तो भक्तों के बीच धक्का मुक्की ‎तक हो जाती है। भीड़ को काबू करने के लिए आठ दस पुलिस के जवान लगे रहते हैं। ‎
                मंदिर में गुरुवार शाम को विशेष आरती होती है। शाम का वक्त रहता है, सो हर कोई ‎बाबा का दर्शन कर लेना चाहता है। अगर थाड़ा सा लेट हुआ तो मंदिर कैंपस में बैठने के लिए जगह नहीं ‎मिलेगी। पीछे खड़ा होना पड़ेगा। और अगर ज्यादा देर हो गयी तो फिर समझिये...सिर्फ आरती की आवाज़ ‎ही सुनाई देगी। सो, कई लोगों ने तो टाइम फिक्स कर रखा है। आरती शुरू होने से डेढ़ दो घंटे पहले पहुंच ‎जाते हैं। बच्चे, बुढ़े, जवान। सभी तरह भक्त। कितना भी ज़रूरी काम क्यों ना हो...गुरुवार शाम चार बजे के ‎बाद सात बजे तक नहीं होगा। बाबा का दर्शन पाने के लिए जुगाड़ लगाना पड़ता है। मंदिर के सामने सड़क ‎के किनारे ऊंची जगहों पर खड़े हो कर देखें तो काफी मशक्कत के बाद आगे खड़े कर्मशील भक्तों के बीच से ‎बाबा का एक झलक मिल जायेगा। हम भी यही करते हैं। चलते चलते बाबा को प्रणाम कर आगे बढ़ जाते ‎हैं............ ‎

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