गुरुवार, दिसंबर 01, 2011

टेंशन लेने का नहीं...देने का

संसद का शीतकालीन सत्र फिर संकट से जूझ रहा है। पहला हफ्ता महंगाई और कालाधन के नाम। दूसरा हफ्ता प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नाम। विपक्षी नेता हंगामा कर घर चले जाते। सरकार के मंत्री बैठक में चाय-पानी करते हैं। नतीजा कुछ नहीं निकल रहा। ऐसा कोई पहलीबार नहीं हो रहा। हर सत्र में कमोबेश ऐसी ही स्थिति होती है। सांसद महोदय हंगामा करके घर में सोते हैं। और हम आप माथापच्ची करते रहते। 2010 में 23 दिनों का शीतकालीन सत्र था। महज सात घंटे चल सका। पिछली बार जेपीएससी को लेकर झगड़ा हो रहा था। इस बार एफडीआई पर रगड़ा है। हालांकि झगड़ा और रगड़ा से ज्यादा इसे अगर फ्रेंडली फाइट कहें तो बेहतर होगा।
आंकड़े बताते हैं कि संसद की एक मिनट की कार्यवाही पर 40,000 रुपये से भी ज्या।दा खर्च होता है। यानी एक घंटे में 24 लाख रुपये। और एक दिन में 1.9 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। आप इन आंकड़ों पर मत जाइए। पढ़कर भूल जाइए। नहीं तो शॉक लगेगा। टेंशन होगा। ब्लड प्रेशर बढ़ेगा। पछतावा। और फिर मुंह से निकलेगा- छोड़ो यार। सो पहले ही छोड़ दीजिए। हमारे देश के नेताजी टेंशन लेते नहीं देते हैं। खुद सुबह सदन स्थगित कर घर में मस्ती करते हैं। अखबार वाले लेख छापते रहें। टीवी चैनलवाले बहस करते रहें। आप टीवी चैनल देखकर माथा पच्ची करते रहो। यही वे लोग चाहते हैं।
सरकार के लोग बड़ा चालाक है। कालाधन पर आडवाणी जी चिल्ला रहे थे। महंगाई पर वाम दल बमक रहा था। भ्रष्टाचार को लेकर मीडिया रोज रोज आंकड़े पेश कर रही थी। सबको एक ही बार में एफडीआई का बम फोड़कर तिलमिला दिया। सब एफडीआई-एफडीआई भौंकते रहे। विश्लेषण करते रहे। इस बीच देश के विकास दर कम होने का आंकड़ा आया। सरकार से इसके बारे में पूछने की फुर्सत किसी को नहीं। करूणानिधि ने एफडीआई के मुद्दे पर सरकार के पक्ष में वोट करने का आश्वासन दिया। चुपचाप कनिमोझी को बेल मिल गया। ना तो मीडिया में इस पर विश्लेषण हुआ। और ना ही इस बार विपक्ष ने सबीआई पर सवाल उठाए।
सो, आप भी सिनेमा हॉल जाकर 'द डर्टी पिक्चर' फिल्म देखिए। या फिर कोलावेरी..कोलावेरी सुनिए। नहीं अगर, आपके भीतर देशभक्ति अकुला रही है। तो संसद के बारे में सोचने की बजाए भारत और वेस्टइंडीज के बीच मैच देखिए। भारत की जीत ताली बजाइए। भारतीय होने पर गर्व करिए। हार जाए तो कोई बात नहीं। क्रिकेट में जीत हार होता रहता है- ये सोचकर सो जाइए। और फिर भी अगर संसद और सांसद के बारे में आपके मन में कुछ कुछ होता है तो 2014 का इंतज़ार कीजिए। कुछ बेहतर करिए...सिर्फ एक बार...और जो नेता आपको पांच सालसे टेंशन दे रहे हैं....उन्हें आप टेंशन दे दीजिए ।

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