रविवार, अक्तूबर 03, 2010

आंधी

एक आंधी
अचानक उठी,
उजड़ गए
सैकड़ों घर,
बेकाम हो गए
हज़ारों हाथें,
उड़ा ले गई
आंखों की नींदें,
गायब हो गए
शहर से
एक-एक परिंदे,
आंधी थमने पर,
धूल छटने के बाद,
एक रात मैंने देखा,
चमचमाते शहर में
बेलिबास,
भूखे पेट,
डिवाइडर पर सोये
मज़दूरों की टोली,
आंधी का
ये रूप देखकर
थम गई
मेरी सांसें,
मैं सोचने लगा,
ये कैसी आंधी ?
तभी पीछे से
एक आवाज़ आई
ये आंधी कोई आइला,
कैटरीना या सुनामी नहीं थी,
ये आंधी प्रगतिवादी थी ।।

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