बुधवार, अप्रैल 14, 2010

नक्सली हमले के बाद..............

हम कैसे भूल सकते हैं

उस लोहमर्षक मंजर को,
छाती पर बैठकर
दिल में चुभो दिये गये खंजर को,

हमें अपने घाव को
तब तक कुदेरते रहना होगा
जब तक कि उसको
तबाह ना कर दूं ,
उसको बर्वाद ना कर दूं ,

इंतकाम की ज्वाला को
अपने सीने में जलाते रखना होगा,
रंग और ख़ून में फर्क समझना होगा,

आखिर कब तक
हम मौत की सौगात को स्वीकारते रहेंगे,
अपनों की लाशों को ढ़ोते रहेंगे,
अपने परिजनों को खोते रहेंगे,
बंदूक से खेलने वालों के साथ
समझौता की बात करते रहेंगे,

उसे हमको मारने की नियत बन चुकी है,
हमें भूलने की आदत हो चुकी है,

लेकिन अब नहीं,
हम नहीं भूलाना चाहते इस ज़ख़्म को,
क्रुररता से भरे उस क्षण को,
इस बार हमें कुछ करना होगा,
अपनी ज़मीर को जगाना होगा,
अपनी सहानुभूति को ही
अब शस्त्र बनाना होगा,
ताकि जन्म लेने वाला बच्चा
उसके डर से
गर्भ में ही ना दम तोड़ दे ।।

2 टिप्‍पणियां:

  1. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. अब शस्त्र बनाना होगा,
    ताकि जन्म लेने वाला बच्चा
    उसके डर से
    गर्भ में ही ना दम तोड़ दे ।। ....acchi rachna.

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