बुधवार, मई 27, 2009

बिहार में छोटी पार्टी

हर कोई नेता बनकर सत्ता की कुर्सी तक पहुंचना चाहत है। इसके लिए उन्हें चुनाव से बेहतर समय भला कौन सा मिल सकता है। चुनाव आते ही बड़े नेता बनने के लिए सब टिकट के जुगाड़ में लग जाते हैं। टिकट नहीं मिलने पर कई लोग निर्दलिय खड़े हो जाते हैं तो कई वकायदा अपनी पार्टी तक बना लेते हैं। कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला पंद्रहवी लोकसभा चुनाव में। चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने विभिन्न क्षेत्रों से उम्मीदवारों को मिले मतों का जो ब्योरा जारी किया है, उसमें एक बहुत ही रोचक तथ्य सामने आया है। लोकसभा चुनाव में छोटी पार्टियों ने जमकर अपना-अपना भाग्य आजमाया। बिहार में इस बार 61 पार्टियों ने 178 उम्मीदवार खड़े किये थे। इन पार्टियों मे केवल समता पार्टी ही ऐसी थी जिसके 26 उम्मीदवार मैदान में थे। जबकि इंडियन जस्टिस पार्टी के सिर्फ आठ। अधिकांश पार्टियों के सिर्फ एक उम्मीदवार चुनाव लड़ा। क्षेत्र की जनता तक को पता नहीं था कि नेताजी कौन सी पार्टी के उम्मीदवार हैं। कुछ पार्टियां किसी व्यक्ति विशेष के नाम पर, तो कुछ पार्टियां दूसरे राज्य विशेष के नाम पर चुनाव लड़ी। इन पार्टियों में कुछ का नाम तो चैंका देने वाला था। जैसे गांधी लोहियावादी पार्टी, राष्ट्रीय देहात पार्टी, जागो पार्टी, लाल मोर्चा, एकलव्य समाज पार्टी। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा और मुस्लिम लिग केरल स्टेट कमेटी के नाम पर उम्मीदवारों ने वोट मांगे। ये अलग बात है कि इन पार्टियों के बारे में क्षेत्र की जनता तक को पता नहीं है। परिणाम, एक भी उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाये। जनता द्वारा नकारे जाने के बावजूद ये उम्मीदवार अपना हौसला नहीं छोड़ रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि अगले चुनाव में अच्छे परिणाम आयेंगे। बहरहाल चुनाव समाप्त हो चुका है। उम्मीदवार भी अपने-अपने कामों में लग गये हैं। लेकिन सवाल ये है कि ये छोटी-छोटी पार्टियां कब तक लोगों को बरगलाती रहेंगी ? और चुनाव आयोग इन दलों की लंबी फेहरिस्त को कब तक संभालता रहेगा ?

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