शनिवार, मई 16, 2009

जीत का रूका रथ

एक पुरानी कहावत है कि समय बलवान होता है। यदि वह अनुकूल हो तो आदमी को आसमान की ऊंचाई तक पहुंचा देता है और यदि विपरीत हो तो कहीं का नहीं छोड़ता। समय का कुछ ऐसा ही खेल हो रहा है लोजपा सुप्रीमो रामलविलास पासवान के साथ। जो कभी दलित राजनीति के रास्ते प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का सपना देखते थे। लेकिन पंद्रहवीं लोकसभा में उनका सूपड़ा साफ हो गया।

बुझा हुआ चेहरा और सूनी आंखे। लोजपा सुप्रीमों का ये रूप उनकी आषा के ठीक विपरित है। सूबे में भारी जीत के प्रति आष्वस्त रामविलास की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। राम विलास भले ही इस बार जीत हासिल नहीं कर पाये, लेकिन उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि उनकी कामयाबी की गाथा को बयां करती है। और इसका गवाह है हाजीपूर। जहां से वह पहलीबार लोकसभा का चुनाव जीते थे। लोजपा सुप्रीमो पासवान बिहार के पहले नेता हैं जिसे जनता ने आठ बार लोकसभा तक पहुंचाया है। चैदहवीं लोसभा चुनाव में चार सीटों के साथ यूपीए गठबंधन में शामिल हुए, लेकिन पंद्रहवी लोकसभा चुनाव में वह यूपीए से अलग होकर लालू और मुलायम के साथ मिलकर चुनाव लडे।़ और उनकी पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।

62 वर्षिय रामविलास पासवान अपने छात्र जीवन के समय से ही राजनीति करने लगे थे। वह 1969 में संयुक्त सोषलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में बिहार विधान सभा का चुनाव जीते थे। 1974 के आंदोलन में जयप्रकाष और राजनारायण के काफी करीब रहे पासवान 1975 में इमरजेंसी के दौरान जेल भी गये। 1977 में जब वह जेल से बाहर निकले तो जनता पार्टी का सदस्य बने। और फिर सातवीं लोकसभा चुनाव में वह हाजीपुर लोकसभा सीट से रिकाॅर्ड मतों से जीते। पांच लाख से अधिक मतों से जीत हासिल कर गिनीज बूक आॅफ वल्र्ड रिकाॅर्ड में अपना नाम दर्ज करवा चुके पासवान ने 1980 में दलित सेना का गठन किया। 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में पासवान को पहली बार हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन उसके बाद से वह लागातर चैदहवीं लोकसभा चुनाव में जीतते रहे। दलितों की राजनीति करनेवाले रामविलास ने सन् 2000 में लोकजनषक्ति पार्टी बनाई। देष में जब कभी दलित प्रधानमंत्री बनने की बात हुई तो रामविलास ने भी अपनेआप को एक सषक्त उम्मीदवार के रूप में सामने लाया। अभी तक देष के पांच प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके पासवान केन्द्रीय मंत्रीमंडल में श्रम एंव सामाजिक कल्याण, संचार, रेल और रसायन एवं उर्वरक जैसे महत्वपूर्ण विभाग देख चुके हैं।भारतीय राजनीति में एक विषेष पहचान बना चुके रामविलास की अगली रणनीति क्या होगी, ये तो बाद में ही पता चलेगा,,,लेकिन एक बात तो साफ है कि किसी का भी समय हमेषा एक समान नहीं होता......

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