शुक्रवार, जनवरी 16, 2009

गिरता हूँ .....उठता हूँ.....

जख्म गहरा है, फिर भी सहता हूँ,
चोट खाता हूँ, पर मुस्कुराता हूँ,
खुश रहने की आदत है,
हंसता रहता हूँ।

दूसरों को छोड़, ख़ुद को ज्यादा सुना,
हमेशा कठिन डगर को चुना,
गिरता हूँ,
थोड़ा घबराता हूँ,
फिर से चल पड़ता हूँ,
चलने की आदत है,
चलता रहता हूँ।
दोस्तों ने बहूत कुछ दिया,
अपना बनकर गैरों ने धोखा दिया,
पतझड़ के मौसम में,
हरियाली को ढूँढता फिरता हूँ,
पाने की इच्छा है,
खोजता रहता हूँ।

परिस्थिति ने भी खूब खेल खेला है,
हमने विश्वास के बल पर इसे झेला है,
शह और मात के इस खेल में,
कभी जीता तो कभी हाडा हूँ,
फिर भी लड़ता हूँ,
जीतने की हसरत है,
लड़ता रहता हूँ॥

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