मंगलवार, दिसंबर 23, 2008

आखिर .....

आगे....

कहते है कि खेल और संगीत प्रेम से बना एक एसा हथौरा है जो हर द्वेष और मजहब कि दीवारों को तोर देती है। हम ने हमेशा इस हथौरे उपयुक्त समय में प्रयोग किया। इस के बावजूद हमें क्या मिला ? परिवार में मातम और सिर्फ मातम। आख़िर का तक हम इस हथौरे का प्रयोग ऐसे ह्रदय विहीन लोगों के लिए करते रहेंगे जो इस का मतलब नही समझते हैं।

यह कोई कैसे सोच सकता है कि जिस परिवार का एक सदस्य हमारे भाई का कत्ल करेगा हम उस परिवार को स्वीकारेंगे ? पनाह देंगे। प्यार देंगे। अब ये सब नाटक बहूत हो चुका है। हम नही कहते कि उस परिवार का हरेक सदस्य कातिल है। निर्दयी है। डरपोक है। पर उस परिवार के किसी सदस्य को स्वीकारना भी अब सहनशीलता से परे है। कहते है कि सहनशीलता जब हद से ज्यादा हो जाती है तो वो बुजदिली में बदल जाती है। और हमारा परिवार ऐसा नहीं है। हम एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते है जो जिस तरह प्यार में जान देना जनता है उसी तरह धोखा मिलने पर उस को बर्बाद करना भी बेहतर जनता है ........

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