रविवार, दिसंबर 28, 2008

नेता बोले तो .........मौकापरस्त

साल २००८ समाप्ती की ओर अग्रसर है। जाते जाते इसने अपने साथ एक और निर्दोष को इतिहास के पन्नो में समेट लिया है। बेचारा इंजिनियर। लाचार। बेबस। कुछ न कर सका। एक बाहुबली की अंधी जूनून का शिकार हो गया। सरकार और उसकी प्रशासन तमाशबीन बनकर देखती रह गयी। एक औरत विधवा हो गयी। एक बच्चा अनाथ हो गया। एक घर का चिराग बुझ गया। लेकिन उजाला हुआ राजनीति की गंदी कली कोठारी में। जहाँ के खिलारियों को इस रोशनी में पत्ता खेलने का मौका मिल गया। जिनकी आदतें है बेशर्मी के साथ ऐसी मौके की तलाश करना। रोशनी थोरी तेज़ है। माहौल गर्म है। मामला मीडिया में जोरो पर है। अखबार का पेज भर रहें है। टीवी पर गरमा गरम बहस हो रहा है। छोटा से बरा हर खिलारी इस मौके का फायदा उठाना चाह रहा है। सभी ने सहानुभूति का पिटारा खोल दिया है। तरह तरह का दिलासा दिला रहा है। सब जमकर सरकार को लतारने में लगा है। सरकार सफाई देने में जुटी है। हर कोई छोटी से छोटी मौके को हाथ से नही जाने देना चाहता है। हो सकता है मौके का फायदा उठाकर कोई मृतक की पत्नी को अगले चुनाव में टिकेट देने तक की बात कर रहा हो। कुछ भी हो सकता है। हर कोई अपने हिसाब से प्रयास कर रहा है। कोई दोषी पर कर्रबाई की बात कर रहा है। कोई घटना की सीबीआई जाँच की मांग कर रहा है। कोई तो मुख्यमंत्री से इस्तीफे तक की मांग कर रहा है। मुख्यमंत्री के इस्तीफे से भला उस पीरित परिवार का क्या होगा। उसे तो न्याय चाहिए। कौन दिलाएगा ? सीबीआई। जो स्वयं कुछ सालों से अपना अस्तित्व खोज रही है। जो साधारण सी बच्ची के कातिल को अभी तक नहीं धुंध पायी है। ख़ैर, जो भी हो। तत्काल दबाव में एक न्यायिक जाँच कमेटी बनाई जायेगी। कमेटी धैर्यतापूर्वक धीरे धीरे अपना कार्य पुरा करेगी। तब तक हालत सामान्य हो जाएगा फिर कोई नया मुद्दा आएगा। सब इसे भूल जाएँगे। बेचारा। पीरित परिवार। अपने खो चुके परिजन की याद में दिन कटाने पर मजबूर रहेंगे। ऐसा कोई पहलीबार नही हुआ है। कुछ दिन पहले एक बिहारी परिवार के साथ भी ऐसा ही घिनौना खेल हुआ था। देश बहूत लंबा चौरा है। इनखिलारियों के लिए समय समय पर रोशनी की जुगार होती रहती है। यही इनकी जरूरत है। यही इनकी आदत है। और यही इनकी सच्चाई भी ......................

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