मंगलवार, अक्तूबर 11, 2011

जन चेतना यात्रा

वक्त बदला। निजाम बदला। मुद्दा बदल गया। और सवारी भी। राम मंदिर को छोड़ लालकृष्ण आडवाणी अब भ्रष्टाचार और स्वच्छ राजनीति के लिए लोगों को जगाने चले हैं। रथ को छोड़कर लक्जरी बस में सवार हो चले हैं। राम रथ के बदले इस बार जन चेतना यात्रा है।
आडवाणी एक तीर से कई निशाना साध रहे। सबसे पहली बात, जिस बिहार में उनके रथ को रोक दिया गया। वहीं से उन्होंने रथ की शुरुआत की। 1990 में रथ रोककर रातोंरात राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाले लालू को करारा जवाब है। इस बार लालू के ही संसदीय क्षेत्र से यात्रा की शुरुआत हुई है। उस वक्त लालू यादव की सरकार थी। लालू अभी भी कशमशा रहे हैं। पर कटे पक्षी की तरह छटपटा रहे हैं। कोई क्यूं नहीं रोकता आडवाणी की गाड़ी को। लेकिन क्या करें। उनके पास उतनी ताक़त नहीं बची। और जिसके पास ताक़त है, वो खुद सारथी के साथ है।
दूसरी बात, आडवाणी इस यात्रा के ज़रिए भ्रष्टाचार और महंगाई को मुद्दा बनाकर मिशन 2014 को तय करना चाहते हैं। इसके लिए जननायक जेपी के जन्म दिन और जन्म स्थली से बेहतर जगह नहीं मिल सकता था। सो उन्होंने सीताब दियारा से ही इस यात्रा की शुरुआत की।
तीसरी बात, पीएम इन वेटिंग के लिए नरेन्द्र मोदी कुलबुला रहे थे। उन्हें भी आडवाणी ने मौन जवाब दे दिया। इस मसले पर आडवाणी को जदयू का दिल खोलकर समर्थन मिला। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दबाव के बावजूद आडवाणी ने हर संभव साबित करने की कोशिश है कि एनडीए का सर्वमान्य नेता अभी तक वही हैं।
देश में भ्रष्टाचार और महंगाई बड़ा मुद्दा है। जनता इसकी आग में झुलस रही है। यूपीए सरकार के खिलाफ आवाम में गुस्सा है। अन्ना हज़ारे के ज़रिए लोग अपनी ताक़त दिखा चुके हैं। आडवाणी उसी ताक़त को अपने पक्ष में लाकर ज़िंदगी की अंतिम ख्वाहिश पूरा करना चाहते हैं।
रथ यात्रा के खांटी खिलाड़ी लालकृष्ण आडवाणी देश को जगाने चले हैं। जनता के मिजाज को टटोलने में जुटे हैं। 23 राज्यों और चार केन्द्र शासित प्रदेशों में पहुंचकर हुंकार भरेंगे। परिवर्तन की भूमि से शुरू की गई इस यात्रा में आम लोगों का उत्साह देखना होगा....क्योंकि 84 साल के आडवाणी की ज़िंदगी की ये अंतिम अंतिम देशव्यापी यात्रा होगी।

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