बिहार में घूसखोरों के लिए बुरी खबर है। खासकर बाबुओं के लिए। केन्द्र सरकार ने बिहार सरकार के एंटी करप्शन बिल को मंजूरी दे दी है। इसके तहत भ्रष्टाचार के आरोपियों की संपत्ति जब्त कर ली जायेगी। थोड़ी परेशानी की बात है। लेकिन उन्हें ज्यादा घबराने की जरूरत है। क्योंकि ये सब तभी होगा, जब वो दोषी साबित होंगे।
इस बिल को मंजूरी देकर केन्द्र सरकार ने तो आठ महीना पुराना अपना बोझ हल्का किया है। बिहार सरकार ने दोनो सदनो में मंजूरी के बाद इसे केन्द्र सरकार के पास भेज दिया था। केन्द्र की मंजूरी के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक शगुफा छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचारियों को जेल तो जाना ही होगा साथ ही उनके घर में स्कूल खोल दिये जायेंगे। ठीक है। सब कुछ होगा। लेकिन पहले दोष को तो साबित करना होगा।
जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे तो भारी संख्या में भ्रष्ट अधिकारी पकड़े गये। 2008 में 78 मामलों में 97 लोगों की गिरफ्तारी हुई। जबकि 2009 में पचास मामले सामने आये जिसमें 62 लोग गिरफ्तारी हुई। 2006 में साठ मामले में 66 की गिरफ्तारी हुई। 2007 में 108 मामले सामने आये जिसमें 131 लोगों की गिरफ्तारी हुई।
लेकिन क्या हुआ। पकड़े गये। सस्पेंड हुए। जेल भी गये। और जमानत मिल गई। और आज या तो वो फिर से काम कर रहे हैं या घर पर हैं। मिलाजुला के ठीकठाक हैं। इतना कमा लिये हैं कि नौकरी पर नहीं भी रखे गये तो भी मस्त हैं। और वो इतना बेवकुफ तो हैं नहीं कि सभी संपत्ति अपने नाम से रखे होंगे।
खैर कानून बना है। ऐसे ही कानून और नियम बनते रहते हैं। इससे पहले भी कई कानून बने और वो किताब के पन्नों में दीमक के साथ खेल रहे है। ये कानून भी किताबों में ही धूल फांकेगा या कुछ गुल भी खिलायेगा ये तो उन्हीं अधिकारियों पर निर्भर करता है, जिनके लिए ये कानून बना है । लेकिन एक लॉ के छात्रों को रट्टा मारने के लिए एक और थ्योरी मिल गयी है।
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