आजकल इज्जतदारों के भाव गिर गये हैं
औने-पौने दाम पर इमान बिक रहे है।
लगने लगी है रिश्तों की बोलियां
इंसान सरेआम नीलाम हो रहे है।
लंबी-लंबी कार पर चढ़ने की हसरत में
शहर में तेजी से बेइमान बढ़ रहे हैं।
इस मॉडर्न बाजार में जो शिरकत नहीं करते
वो रइसों की सोसाइटी से दरकिनार हो रहे हैं।
बदलने लगी है अब बेशर्मों की परिभाषा
बिकने वाले लोग अब किताब लिख रहे हैं ।।
बेहतरीन है भाई, लगे रहो,
जवाब देंहटाएंअसित नाथ तिवारी