साठ साल का बूढ़ा
शून्यता में भटकता
कराहता, पुकारता
बीच राह पर पड़ा हूं
निशक्त बन निहारता
असमर्थता की भाव से
लोग मुझे देखता
आन, बान, शान हूं
मैं देश का अभिमान हूं
गण का मैं तंत्र हू
पर गन वाले संभालता
अभ्रदता के साथ जब-जब
वो मुझसे खेलता
तब ये दर्द बहुत सालता ।।
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