शुक्रवार, जनवरी 22, 2010

आईपीएल, पाकिस्तान और सियासत


यह बिल्कुल गलत है। खेल को सियासत से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। भारत-पाकिस्तान के बीच मतांतर के बावजूद खेल जारी रहा। और रहना भी चाहिए। लेकिन आईपीएल की मंडी में पाक क्रिकेटरों की बोली नहीं लगने पर पाकिस्तानियों ने इसे सियासत से जोड़ दिया। वह इसे बडा़ कुटनीतिक मुद्दा मानकर ज़हर उगलना शुरू कर दिया है।

               दरअसल पाकिस्तान पहले से ही वर्ल्ड कप की मेजबानी छिनने का आरोप भारत पर लगा रहा है। अब जब आईपीएल की मंडी उनका खीरीददार नहीं मिला तो वे विफर पड़े। और इसमें उन्हें पाकिस्तान के विभिन्न रजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों का समर्थन मिल रहा है। अफसोस की बात ये है कि वे बीसीसीआई या आईपीएल के फैसले को भारत सरकार के फैसले से जोड़कर देख रहे हैं।
                बीसीसीआई ने खालाड़ियों को बोली के लिए खड़ा कर अपना काम कर दिया। अब ये फ्रेंचाइजी टीम के मालिकों पर निर्भर करता है कि वो किस खिलाड़ी को खरीदे और किसे नहीं। पाकिस्तानी खिलाड़ी की बोली नहीं लगने से एक बात तो साफ है कि आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को नहीं चुना जाना, ये वास्तव में 26-11 का टीस है। क्योंकि आईपीएल के सभी मालिक मुम्बई से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। और मुम्बई के बातवरण से प्रभावित होते हैं। ऐसे में कही न कहीं उनके दिल में दर्द आज भी बाकी है। लेकिन इससे बीसीसीआई की मंशा पर प्रश्न चिह्न लगाना सरासर गलत होगा।            
             आईपीएल में अच्छी-खासी कमाई के साथ-साथ नाम भी हो जाता है। लेकिन उन्हें खरीदने के लिए कोई टीम तैयार नहीं हुआ। ऐसे में बौखलाये पाकिस्तानी खिलाड़ियों की प्रतिक्रिया तो स्वभाविक मानी जा सकती है। पर वहां के हुक्मरानों का बयान बेहद निरशाजनक और शर्मनाक है। एक ऐसे समय जब दोनों देशों के रिश्ते धीरे-धीरे समान्य पटल पर लौटने की कोशिश कर रहा है। उस समय पाकिस्तान सरकार का तीखा बयान तल्खी उत्पन्न कर ही देगा।

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