देश संकट काल के दौर से गुजर रहा है। स्वाइन फ्लू कहर बरपा रहा है तो सूखा तड़पा रहा है। एक जान ले रहा है तो दूसरा जान लेने को आतुर है।
स्वाइन फ्लू की चपेट में देश में अभी तक करीब एक सौ लोगों की जाने जा चुकी है। हजारों लोग हॉस्पिटलाइज हैं। हर रोज नये नये जगहों पर इसके केस सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिक इसके लिए एंटी वैक्सिन जुटाने में लगे हैं। देशभर में जांच के लिए नये नये सेंटर खोले जा रहे हैं। एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार केवल अमेरिका में स्वाइन फ्लू से ९० हज़ार लोग मारे जायेंगे। स्वभाविक है इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा। ग्लोवलाइजेशन का दौर है। अमेरिका में जो होता है उसका असर सारी दुनिया में देखी जाती है। भारत भी उससे अछुता नहीं है। आर्थिक मंदी शुरू हुआ अमेरिका में। प्रभावित हुई पूरी दुनिया। भारत में भी लाखों लोग बेरोजगार हो गये। नौकरी छुटने का सिलसिला अभी तक जारी है। बेरोजगारी बढ़ रही है। खेती हो नहीं रही। क्योंकि सूखा पड़ा है। देश के १६१ जिले सूखे के चपेट में है। और भी बढ़ने की आशंका है। मंहगाई दिन पर दिन आसमान छू रही है। आम लोग परेशान हैं। लोग परिस्थिती के हाथों बेबस हो चुका है।
ऐसे में एक अच्छी बात है कि लोग हिम्मत नहीं हारे हैं। लोगों में विश्वास है कि सब कुछ ठीक हो जायेगा। आजाद हिन्दुस्तान ने ६७ का अकाल देखा है तो सुनामी और कुसहा का कहर भी। हर विपरित परिस्थिति में पार पाने की जज्बा है लोगों में। जिसकी बदौलत लड़ने को तैयार हैं। लड़ भी रहे हैं। और आगे भी लड़ेंगे।
इस सब के बीच सवाल उठता है कि सरकार कहां है और कर क्या रही है ? सरकार है और अपने हिसाब से जोड़-तोड़ मे जुटी है। लोगों के आश्वासन दे रही है। ये जानते हुए भी कि आश्वासनो से कुछ नहीं होगा। लेकिन नेताओं को पता है कि हिन्दुस्तान के लोग सपनो में जिते हैं और सपनो में जिने वाले उम्मीद पर ज्यादा विश्वास करते हैं। सो, सरकार इसका फायदा उठा रही है।
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