जसवंत सिंह बीजेपी के संस्थापक सदस्य रह चुके हैं। एनडीए की सरकार में बड़े-बड़े पद संभाले हैं। खुद को पार्टी का हनुमान कहते थे। लेकिन पार्टी ने उन्हें निकाल दिया। जिस तरह से पार्टी ने जसवंत को निकाला वह उसके लिए आशातित नहीं थे। उनको उम्मीद नहीं थी कि जिन्ना की बड़ाई करना इतना मंहगा पड़ेगा। इससे पहले आडवाणी भी जिन्ना को महान नेता बता चुके थे। लेकिन पार्टी उन्हें अध्यक्ष पद से हटा कर खानापूर्ति कर दी थी। लेकिन जसवंत को पार्टी को छोड़ना पड़ा।
जसवंत अच्छे खासे परिवार से आते हैं। पैसे की कोई कमी नहीं है। फौज की नौकरी छोड़ चुके हैं। शौकिया तौर पर राजनीति करते हैं। घोषणा कर चुके हैं कि सक्रिय राजनीति से संन्यास नहीं लेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि आगे क्या करेंगे जसवंत ? किसी दूसरी पार्टी में शामिल होंगे या फिर खुद नई पार्टी बनायेंगे ?
किसी को पार्टी से निकालना बीजेपी के लिए कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी कई नेता निकाले जा चुके हैं। पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे बलराज मधोक को पार्टी निकाल चुकी है। इसके अलावा आरिफ बेग, शंकर सिंह बाघेला, कल्याण सिंह, उमा भारती, मदन लाल खुराना जैसे दिग्गज को पार्टी बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। इसमें से किसी भी नेता की राजनैतिक अवस्था बहुत अच्छी नहीं है। सिर्फ शंकर सिंह बाघेला ही दूसरी पार्टी में शामिल होकर मंत्री बन पाये। पार्टी के स्टार प्रचारक रही उमा भारती और राम के नाम पर पार्टी के हिरो रहे कल्याण सिंह अभी भी राजनीतिक जमीन तलाश रहें है। कभी दिल्ली की राजनीति में के मजबूत स्तम्भ रहे मदन लाल खुराना की राजनीतिक जीवन समाप्त हो चुका है।
वैसे उनके सार्थन में पार्टी के वरिष्ट नेता सुधीन्द्र कुलकर्णी और अरूण शौरी खड़े हैं। सुधीन्द्र ने तो वकायदा पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। अरूण शौरी भी खुलकर सामने आ गये हैं। भारी अंतःविरोध के बीच हो सकता है कि पार्टी जसवंत के निष्काशन पर फिर से विचार करे। लेकिन जसवंत भी बिजेपी के बारे में मीडिया में बयान देना शुरू कर दिये हैं। इस बीच जसवंत सिंह अटल बिहारी वाजपेयी से भी मिल चुके हैं। ऐसे में जसवंत सिंह का अगला स्टेप क्या होगा, ये देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा।
सोमवार, अगस्त 24, 2009
क्या करेंगे जसवंत......
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जो लोग राजनीति में केवल सत्ता के लिए आते हैं उनमें से एक है जसवंत सिंह जी। राजस्थान भाजपा में जो कलह हो रहा है उसके जनक भी यही हैं। बहुत अधिक महत्वाकांक्षी लोगों का यही हश्र होता है। दूसरे संगठन में चले तो जाएंगे लेकिन वहाँ यहाँ जैसी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति नहीं कर पाएंगे। भाजपा ने भी इन्हें निकालने में जल्दीबाजी कर दी, इससे एक फ्यूज्ड बल्ब वापस जल उठा है।
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