लगता है कि पिछली बार आयी बाढ़ की तबाही से सरकार सीख लेने को तैयार नहीं हैं। मानसून दस्तक देनेवाला है। उधर सरकार की लेटलतीफी के कारण बाढ़ भी कहर बरपाने को तैयार है। गरीब जनता एकबार फिर से त्रासदी की कोख में समाने को विवश है। सरकार योजनाएं बनाकर लोगों को बहला रही है। सरकारी उदासीनता का आलम यह है कि अभी तक आधी योजनाएं भी पूरी नहीं हो पायी है और जिस रफ्तार से काम हो रहा है, उससे नहीं लगता है कि समय पर काम पूरा हो पायेगा। सरकार बाढ़ की तबाही से बचने के लिए तरह-तरह की योजनाएं बना रही है। लेकिन उन योजनााओं पर सख्ती से अमल नहीं किया जा रहा है। परिणाम है कि जलसंसाधन विभाग द्वारा करवाये जा रहे बाढ़ सुरक्षात्मक योजना का आधा काम भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है। सरकार बाढ़ की तबाही को ध्यान में रखते हुए 439 करोड़ 96 लाख रूपया खर्च कर तीन सौ 64 योजनाएं बनाई। इन योजनाओं को पंद्रह जून तक पूरा कर लेना था, पर अभी तक महज 106 योजनाओं का काम ही पूरा हो सका है। पचास योजनाओं पर पंद्रह से बीस प्रतिषत काम बांकी है, जबकि 80 योजनाओं पर तो अभी तक पचीस से तीस प्रतिषत काम ही हो पाया है। चैंकाने वाली बात तो यह है कि 128 योजनाओं का काम तो अभी तक आधा भी नहीं हुआ है। इससे बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के लोग काफी डरे हुए हैं। सरकार की इस ढ़ुलमुल रवैये से तो यही लगता है कि वह लोगों को सिर्फ झुठी दिलासा दिला रही है। लेकिन सवाल है कि आखिर कब तक सरकार, लोगों को ठगती रहेगी और बाढ़ के पानी में लोगों की उम्मीदें बहती रहेगी ?
रविवार, मई 31, 2009
बाढ़ की तबाही से सरकार सिखाने को तैयार नही
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