आखिरकार उस नाटक का पटाक्षेप हो ही गया....जो प्रायोजित रूप से चुनाव के लिए खेला गया था। इस नाटक में एक अनजान चेहरे को नायक के रूप में सामने लाया गया,,,और और नाटक का अंत होते-होते लोगों ने उसे हिरो बना दिया। चुनाव खतम होने के चार दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने वरूण गांधी के उपर से एन एस ए हटा लिया। वरूण ने जो चाहा था वो उन्हें मिल गया....राजनीति के गलियारों में गांधी-नेहरू परिवार का ये गुमनाम चेहरा अपने भड़काउ भाषण से अचानक चर्चा मे आया.... और लोगों के जेहन में छा गया। इस से पहले साहित्य में रूचि रखनेवाले चंद लोग ही वरूण को जानते थे....लेकिन हिन्दुओं का स्वयंघोषित मसिहा बनकर वरूण ने अपनी पहचान बनाने के लिए लोगों के बीच एक ऐसी चाल चली जो आज के राजनीत के लिए सब से उपयुक्त और अचूक हथियार माना जाता है....उन्होंने इसके लिए लोगों के इमोषन का जमकर इस्तेमाल किया। वरूण राम के रथ पर सवार होकर हिन्दुत्व के रास्ते राजनीति के जिस मुकाम तक पहुंचना चाहते थे....उसमें वह बहुत हद तक सफलता भी पाई....अब देखना होगा के राजनीति में अपनी पहचान बनाने के बाद भगवा वस्त्र धारण करनेवाले वरूण राम को कब तक याद रख पाते हैं....
गुरुवार, मई 14, 2009
वरुण एन एस ऐ से मुक्त
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