एक
मंगलवार, दिसंबर 29, 2009
चंचल मन
सब के बीच बैठा हूं
लेकिन वहां नहीं हूं
जहां मैं बैठा हूं
निष्कर्षविहीन बहस निरंतर जारी है
सशरीर उपस्थित हूं
लेकिन मेरा मन
भटक रहा है कहीं और ।
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