शुक्रवार, अगस्त 05, 2011

इंतज़ार......

अमिताभ बच्चन। सदी के महानायाक। जितना बड़ा कद। जितना बड़ा नाम। वैसे ही देखने की तमन्ना। उनसे मिलने की ख्वाहिश। जब ज़िंदगी का सपना पूरा होने वाला होता है तो चेहरे पर क्या चमक होती है, ये हर किसी को देखकर लगता था। कोई बोलकर अपनी ख्वाहिश जता रहा था। तो किसी की मुस्कान हर लफ़्ज को बया कर रही थी। जिसे सिर्फ सिनेमा के पर्दे पर या टीवी पर देखा था। उसे नजदीक से देखने की हसरत पूरी होने वाली है। हर किसी ने अपने पहचान वालों को फोन कर दिया। आज अमिताभ को देखेंगे। हाथ मिलाएंगे। ऑटोग्राफ लेना है। फोटो खिंचवाना है। ऐसा लग रहा था, जैसे चांद धरती पर उतर रहा हो।
जितनी बड़ी शख्सियत उतनी ही बड़ी इंतज़ार की घड़ियां। पटना में मौर्य के ऑफिस आने की सूचना मिली। सुबह आठ बजे से इंतज़ार शुरू। मौर्य के कर्मचारियों की। उन प्रशंसकों की, जो उनकी एक झलक पाने के लिए मौर्य ऑफिस के बाहर खड़े थे। लोगों में एक अजीब उत्सुकता दिखी। पहलीबार किसी महानायक से मिलने के लिए इतना बड़ा दीवानपन देखा। पागलपन देखा। नजदीक से देखा, महानायक के प्रशंसकों को। कोई वर्ग नहीं। कोई आयु नहीं। साठ पार कर चुकी महिलाएं। सड़क पर स्कूली बच्चों की ऐसी कतार लगी थी, जैसे स्कूल में छुट्टी दे दी गई हो। हर निगाहें शहंशाह को ढूंढ़ रही थी। ना जाने कब आएंगे। सामने छत पर दो लड़के, यूं बैठे थे मानों दीवार का विजय और रवि हो। कौन था पता नहीं। लेकिन दोनों की आतुरता देखते बनती थी।
वक़्त के साथ मन की अकुलाहट भी बढ़ती जा रही थी। आख़िर कब ख़त्म होगी इंतज़ार की घड़ी। छह घंटे तक यूं ही इंतज़ार होता रहा। लेकिन वो नहीं आए। आया तो उम्मीदों को तोड़ने वाला संदेश। अमिताभ दिल्ली चले गये। लंबे इंतज़ार के बाद उम्मीदों का बिखरना क्या होता है, हर चेहरे पर झलक रहा था। क्यों नहीं आए अमिताभ। पांच मिनट के लिए आ ही जाते तो क्या हो जाता। कौन सी आफ़त टूट पड़ती। भूखे प्यासे इंतज़ार करता रहा। ऐसे थोड़े ही होता है। जितनी मुंह, उतनी बातें। लेकिन हक़ीक़त की हवा अपने झोंके के साथ सपनों का आशियाना उड़ा ले गया।

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