मंगलवार, अक्तूबर 26, 2010

वो...

गली के मोड़ पर

पहलीबार
वो मुझे
दिखी थी
बिल्कुल शर्मिली शी,
एक-दूसरे की
नज़रें मिली
और वो आगे बढ़ गई..
लेकिन वो
नींद में रंगीन ख्वाब बनकर
मेरी आंखों में तैरने लगी,
मेरी उम्मीदें
उससे मिलने को बेताब थी,
इंतजार...
एक दिन फिर
वो मुझे अचानक
उसी मोड़ पर मिली,
हिचकिचाते हुए
मैंने उसका नाम पूछा...
बस
यूं ही हम दोनों में
शुरू हुआ बातों का सिलसिला
दोस्ती तक पहुंच गई,
अक्सर हम दोनों मिलने लगे,
कब हम दोनों की दोस्ती
प्यार में बदल गई
हमें भी नहीं पता चला,
लेकिन जब जाना
तो जाना कि
हम खुद के भी नहीं रहे,
मैं उस राजा के जैसा हो गया
जिसकी जान
एक चिड़िया में बसती थी,
मेरी ज़िंदगी भी
उसी की होकर रह गई थी,
मेरा लहू
उसके नसों में दौड़ने लगा
हम दोनों
दो जिस्म मगर
एक जान हो गए,
वो रोज मुझसे मिलती थी
घंटों प्यार की बातें होती थी
वो अपना सबकुछ
हमारे पास छोड़ जाती थे,
हां, मैंने उससे कभी
चांद तारे तोड़ लाने का
झुठा वादा नहीं किया,
सात जनमों तक साथ निभाने की
कसमें भी नहीं खाई
बस प्यार ही प्यार करता रहा
एक-दूसरे से.......

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