सोमवार, सितंबर 13, 2010

राहुल के मायने........

राहुल गांधी बिहार को बदलना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि बिहार में युवाओं का राज हो। कांग्रेस की सरकार हो। ताकि केन्द्र जो पैसा भेजता है उसका सदुपयोग हो सके। राज्य का सही मायने में विकास हो सके। राज्यों से पलायन रूक सके। बगैरह, बगैरह,,,। राहुल युवाओं का आइकॉन हैं। एक कर्मशील राजनीतिज्ञ हैं। जो मेहनत के बल पर राजनीति को एक अलग दिशा देने का प्रयास कर रहे है। उन्होंने राजनीति की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश की है। बहुत दिनों के बाद एक ऐसा नेता सामने आया है जिसको चाहने वाले हर कोने में हैं। जर जगह है। दबे मन से ही सही लेकिन हर कोई राहुल की कार्यशैली को पसंद करता है। बिहार में भी एक बहुत बड़ा समुह है जो राहुल को चाहता है। जिन्हें राहुल की राजनीति पसंद है।


                 बिहार में विधानसभा चुनाव होना है। और यहां कांग्रेस मृतप्राय है। 243 विधानसभा क्षेत्रों में अभी महज नौ सीटों पर कांग्रेस है। सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए लंबी रेस लगानी है। कांग्रेस राहुल और सोनिया के ज़रिये ही बिहार में सत्ता की कुर्सी तक पहुंचना चाहती है। और राहुल युवाओं के ज़रिये। मतलब साफ है। राहुल गांधी जमकर विधानसभा चुनाव में प्रचार करेंगे। और वो इसकी शुरुआत भी कर चुके हैं। क्योंकि राहुल भी जानते हैं कि केन्द्र में अगर मज़बूती के साथ रहना है तो बिहार और यूपी को मज़बूत करना होगा।

              बिहार कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। जहां से कांग्रेस के सबसे ज्यादा सांसद हुआ करते थे। वही बिहार जहां इंदिरा गांधी ट्रैक्टर पर चढ़कर बेलछी गांव पहुंची थी, जहां भीषण नरसंहार हुआ था। उस समय जब इंदिरा ट्रैक्टर और हाथी पर चढ़कर टूटे सड़कों पर पानी को पार करते हुए बेलछी गांव पहुंची थी, तो तानाशाह इंदिरा का एक दूसरा चेहरा सबके सामने आया था। लोगों ने इंदिरा की बाहवाही की थी। सब उनके कायल हो गये थे। इस समय राहुल गांधी कमोबेश उसी नब्ज को टटोलते हुए राजनीति कर रहे हैं। और आज जब सत्ता विलासिता का माध्यम हो गया है, ऐसे में राहुल का पब्लिक आइकॉन बनना स्वभाविक है।

              राहुल यूपी से चुनाव लड़ते हैं। अमेठी के सांसद हैं। वो यूपी में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे है। दलितों के घर में घूमते हैं। ढ़ावे पर जा कर खाना खाते हैं। कभी आंदोलित किसानों के साथ दिखते हैं तो कभी कुछ और। यानी मायावती सरकार के ख़िलाफ वो हर मोर्चे पर खड़े रहने की कोशिश करते हैं।

           लेकिन बिहार में ऐसा नहीं दिखता। ना तो वो बिहार में ज्यादा समय देतें हैं। ना ही दलितों के घर में खाना खाते हैं और ना ही किसानों के साथ खड़े होते हैं। इससे क्या समझा जाए ? राहुल जो राजनीति कर रहे हैं, उसमें दोहरापन का कोई जगह नहीं होता। फिर यूपी की अपेक्षा बिहार में नगण्य ध्यान क्यों देते हैं। बिहार पिछड़े हुए राज्यों में से एक है। यूं कहें तो यूपी से भी......। ऐसे में राहुल गांधी चुनाव के समय ही क्यों बिहार में दिखते हैं। क्या बिहार में युवा नहीं हैं ? क्या बिहार के लोगों को उनकी ज़रूरत नहीं है ? या बिहार को उनकी ज़रूरत नहीं है ? अगर चुनावी क्षेत्र अमेठी होने के कारण वो यूपी पर ज्यादा मेहरबान हैं तो बिहार से क्यों चुनाव नहीं लड़ते। क्योंकि उनकी मां और कांग्रेस के सबसे बड़े सोनिया गांधी यूपी के रायबरेली का प्रतिनिधित्व करती हैं।

                सवाल कई हैं। लेकिन जवाब कौन देगा। इस सब के बीच इतना साफ है कि अगर राहुल सही मायने में बिहार का विकास चाहते हैं। अगर वो बिहार में कांग्रेस को मज़बूत करना चाहते हैं तो उन्हें बिहार में समय देना होगा। बिहारियों के मन में एक ऐसा विश्वास पैदा करना होगा कि राहुल आपके साथ है। सिर्फ चुनाव के समय पांच मिनट भाषण देने से कुछ भी नहीं होगा।

2 टिप्‍पणियां:

  1. राहुल गाँधी और उसकी पार्टी ने देश और समाज को बर्बाद कर दिया है दिल्ली वालों का जीना हराम कर दिया है ,पूरा देश और समाज करह रहा है ,ये बिहार जैसे प्रबुद्ध राज्य को क्या बदलेगा ..पहले अपने आप को तथा अपनी पार्टी को बदल ले ...?

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