इन लड़ाकुओं की पृष्ठिभूमि को देखकर देश की तमाम राजनीतिक पार्टी इसे राष्ट्रिय सेना ने शामिल कने से इनकार कर रही है। इस मुद्दे को लेकर राजनितिक गलियारों में काफी गर्माहट है। न सिर्फ विपक्षी पार्टी सरकार के खिलाफ है बल्कि सत्ता में शामिल दूसरी पार्टी मधेसी जन अधिकार फोरम और एमाले भी माओवादी के विरूद्ध खड़ी है। नेताओं के बीच बयानवाजी की होड़ लगी हुई है। देश के नेता सब अपने अपने वाक वाणों से युधों के तरफ धकेल रहे है। सरकार में संस्कृति मंत्री गोपाल किरांती का कहना है किकिसी भी हालत में माओवादी जनसेना को राष्ट्रिय सेना शामिल करना होगा नही तो फिर से युद्ध कि स्थिति आ सकती है। वही वरिष्ठ माओवादी नेता मोहन वैद्य किरण भी सेना व्यवस्थापन को लेकर अपने तेवर कड़े किए हुए है। जबकि दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष सुशिल कोइराला ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि यदि सेना व्यवस्थापन पर विशेष जोर दिया गया तो तो कांग्रेस सदन और सड़क दोनों जगहों से आन्दोलन करेगी। कुछ ऐसा ही तेवर सरकार के मुख्य सहयोगी एमाले का भी है। एमाले महासचिव झलनाथ खनाल ने साफ तौर पर कहा है कि सेना व्यवस्थापन को लेकर माओवादी यदि ज्यादा बखेडा खरा करता है तो सरकार गिरने की नौबत आ सकती है। कमोबेश यही कथन मधेशी जन अधिकार फोरम का भी है। वैसे विपक्षी कांग्रेस सहित कुछ पार्टी सेना व्यवस्थापन को लेकर माओवादी को एक विकल्प दिया कि जो माओवादी लड़ाकू निर्धारित मापदंडो पुरा करता है उसे राष्ट्रिय सेना में शामिल किया जा सकता है , पर माओवादी इससे इंकार कर रही है।
बात इतना तक ही सीमित नही है। बात धीरे धीरे बढ़ते हुए वहां तक जा पहुँची है, जहाँ देश के रक्षामंत्री और सेना प्रमुख आमने सामने खड़े है। दरअसल सेन प्रमुख रुक्मंगत कटुवाल सेना में नै भरती कर रहे है। जिससे माओवादी खफा है। रक्षामंत्री राम बहादुर थापा बादल सीधे तौर पर सेना प्रमुख को कहा है कि वह यथाशीघ्र सेना में नई भरती रोक दे नही तो सरकार उनके ऊपर उचित कदम उठाने पर विवश हो जायेगी। जबकि सरकार में पर्यटन मंत्री और वरिष्ठ माओवादी नेत्री हिसिला यमी ने तो यहाँ तक कही है कियदि सेना में नई भर्ती नही रोका गया तो माओवादी भी अपने लड़ाकू सेना में भर्ती करना शुरू कर देगा।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि माओवादी अपने सेना को राष्ट्रिय सेना में शामिल करता है तो क्या तारे क्षेत्र में पल रहे दर्जनों सशत्र समूह चुप बैठेंगे? क्योंकि ये लोग भी हथियार लेकर तथाकथित सामाजिक मांगो को लेकर आन्दोलन कर रहे है। सरकार देश में शान्ति स्थापना को लेकर इन सशत्र समूह से लगातार बातचीत कर रही है। ऐसे में यह सशत्र समूह भी मांग कर सकता है कि उसके कार्यकर्ता को भी राष्ट्रिय सेना में भर्ती किया जाय। यदि नही किया गया तो तो ये सभी सशत्र समूह मिलकर आन्दोलन में उतर जायेंगे, जो सरकार के लिए भाड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकते है। और यदि इन्हे सेना में शामिल कर लिया गया तो यह गरीब देश सेनाओ के भार तलेदब जायेगी। गौर करने वाली बात है कि फिलहाल देश में ९००००० सेना है। और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि नेपाल को किसी भी पड़ोसी देश से सेना सम्बन्धी खतरा नही है। जो देश अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए पड़ोसी देशो पर आश्रित है , वह इतनी भार कैसे सहन कर सकता है। ऐसे में देश में गरीबी बढेगी, भुखमरी होगी और लोक रास्ते पर निकल आयेंगे। जिसे रोकना शायद ही सम्भव हो....................
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