हवस के अंधे दो बेरहमो के द्वारा,
जन्म के चंद मिनटों बाद
फ़ेंक दिए जाने पर
पूछती वह बच्ची
मां, मेरा कसूर क्या है ?
तुमने क्यों मुझे अलग कर दिया,
सबके रहते निःसंग कर दिया,
क्या यही सोचकर तुम
नौ महीनो तक पेट में रखी थी,
क्या मुझ में कभी
अपनी परछाई नही देखी थी ?
मां, तेरा दूध न मिलता
तो मै जी लेती,
पापा का प्यार न मिलता
तो भी रह लेती,
तुमलोगों के साथ होती
तो सब कुछ सह लेती,
पर क्यों अपने बच्ची के साथ धोखा किया ?
मां, तुम तो अब आराम की ज़िंदगी
कहीं जी रही होगी,
मुझे फ़ेंक कर
भारहीन महसूस कर रही होगी,
पापा भी खुश होंगे,
पर मै अभागिन,
लाचार, बेवस,
कचडे के डब्बे में
अपनी जिंदगी खोज रही हूँ
और खुदा से पूछ रही हूँ
की मेरा कसूर क्या है ?
बहुत मार्मिक रचना है।अच्छी लगी धन्यवाद।
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