बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद नीतीन गडकरी ने सबसे बड़ा फैसला झारखंड में सरकार बनाने का लिया था। लेकिन सबकुछ गड़बड़ा गया। बीजेपी और झारखंड विकास मोर्चा के बीच एक महीने से चल रहा खेल खतम हो गया है। दोनों में जीत किसकी हुई, नहीं कह सकते हैं। लेकिन हार आम जनता की हुई है, जिसकी उम्मीद पर पिच बनाकर मैच खेला जा रहा था। कुछ लोग निराश हैं। कुछ गुस्से में हैं। और कुछ शांत बैठे हैं, जिनका ये मानना है कि ऐसा तो होना ही था। लेकिन सब मिलकर गुस्से वाले समुह को आगे बढ़ाकर उन दोषियों को खोज रहे हैं जिनके कारण से ये हार हुई है।
गुरूजी की गुगली पर गडकरी रिटायरहर्ट हो गये। अर्जुन मुंडा के साथ मिलकर जितना कुछ सोचा था, सब कुछ सत्यानाश हो गया। राजनीति के माहिर खिलाड़ी शिबू सोरेन ने सत्ता के टी ट्वेंटी में ऐसा रोमांचक मैच दिखाया कि सब के सब हक्के बक्के रह गये। मैच कभी जेएमएम के पाले में तो कभी बीजेपी के पाले में रहा। लेकिन कमाल देखिये कि रन-रेट के हिसाब से कांग्रेस ट्रॉफी के करीब दिख रही है।
कुछ दिनों पहले इंडियन प्रीमियर लीग को लेकर खेल में कुछ ऐसी राजनीति हुई कि विदेश राज्य मंत्री शशि थरुर की कुर्सी चली गई... तो झारखंड में राजनीति में ऐसा खेल हुआ कि गडकरी की किरकिरी हो गयी। शिबू सोरेन ने ये साबित कर ही दिया कि राजनीति में कोई किसी का नहीं होता, बस मौका मिलना चाहिए, जब और जिसके साथ मौका मिला, आगे बढ़ गये। और हां, उन्होंने बीजेपी को भी कहीं का नहीं छोड़ा। सत्ता के प्रति बीजेपी के मोह को भी बेनकाब कर दिया।
अगर पिछले 9 साल के झारखंड के राजनीतिक इतिहास को देखें तो जेएमएम और बीजेपी दुनों ही पार्टियां हमेशा आमने सामने रही है। दोनों ने हरेक रणनीति, एक दूसरे के खिलाफ बनाई है। बीजेपी को निर्दलीय तो जेएमएम को कांग्रेस रास आई है। लेकिन कुर्सी का खेल देखिये कि विधान सभा चुनाव से पहिले एक दूसरे को गरियाने वाले, गलबहियां कर बैठे। और फिर खंडित जनादेश का हवाला देते हुए जनता के हित की बात कहकर एक दूसरे का हाथ भी पकड़ लिया। लेकिन पांच महिने बाद ही फिर से जनता के हित की बात कहकर तलाक ले लिये। अब आखिरी में भी वही सवाल है कि पहले वाला साथ जनता के हित में था या तालाक वाला। हम भी इसका सही जवाब खोज रहे हैं। आप भी खोजिये। मिल जाये तो जरूर बताइयेगा।
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