मंगलवार, अक्तूबर 11, 2011

आडवाणी की अब तक की यात्रा

लालकृष्ण आडवाणी एक और यात्रा पर निकल चुके हैं। इसी बस पर सवार हो कर आडवाणी निकल पड़े हैं देश को जगाने। जनता के बीच स्वच्छ राजनीति और सुशान का अलख जगाने। भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ केन्द्र की यूपीए सरकार को घेरने। सियासत की छठी देशव्यापी यात्रा आडवाणी लक्जरी बस से कर रहे हैं। अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस बस में वो तमाम चीजें मौज़ूद है। जो आडवाणी को देश दुनिया से रू-ब-रू करायेगा। बस में कम्प्यूटर के साथ इंटरनेट की सुविधा है। डीटीएच के साथ टेलीविजन लगा हुआ है। बस में हाइड्रोलिक सिस्टम लगा हुआ है। बस के साथ 18 गाड़ियों का काफिला रहेगा....किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए एम्बुलेंस रहेगा। 20 नवंबर तक चलने वाली यात्रा 6 चरणों में पूरी होगी। इस बस को महाराष्ट्र के पूणे में तैयार किया गया है। पूरी तरह से बातानुकुलित बस में एक छोटा सा बेडरूम, हॉल और बाथरूम है। रथ यात्रा के खांटी खिलाड़ी लालकृष्ण आडवाणी की सवारी इस बार बदल गई है। अब तक रथ के आकार की गाड़ी पर यात्रा करने वाले आडवाणी इस बार लक्जरी बस से सफर कर रहे हैं। राम का नाम लेकर 1990 आडवाणी सोमनाथ से चले थे रथ पर। इसके बाद देश की आज़ादी के पचास साल पूरे होने पर 1997 में आडवाणी ने स्वर्ण जयंती रथ यात्रा निकाली थी। 2004 में आडवाणी ने भारत उदय यात्रा निकाली। एनडीए के शासन काल में निकली इस यात्रा में इंडिया साइनिंग का नारा दिया गया। जिसे देश ने नकार दिया। 2006 में आडवाणी ने आतंकवाद को लेकर भारत सुरक्षा नाम से रथ यात्रा निकाली। 2009 में आडवाणी ने जनादेश यात्रा निकाली। लोगों ने इसे भी नकार दिया। लेकिन वक्त बदला। मुद्दा बदला और सवारी भी। अगले 40 दिनों तक 7600 किलोमीटर तक का सफर आडवाणी इसी बस से करेंगे...

जन चेतना यात्रा

वक्त बदला। निजाम बदला। मुद्दा बदल गया। और सवारी भी। राम मंदिर को छोड़ लालकृष्ण आडवाणी अब भ्रष्टाचार और स्वच्छ राजनीति के लिए लोगों को जगाने चले हैं। रथ को छोड़कर लक्जरी बस में सवार हो चले हैं। राम रथ के बदले इस बार जन चेतना यात्रा है।
आडवाणी एक तीर से कई निशाना साध रहे। सबसे पहली बात, जिस बिहार में उनके रथ को रोक दिया गया। वहीं से उन्होंने रथ की शुरुआत की। 1990 में रथ रोककर रातोंरात राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाले लालू को करारा जवाब है। इस बार लालू के ही संसदीय क्षेत्र से यात्रा की शुरुआत हुई है। उस वक्त लालू यादव की सरकार थी। लालू अभी भी कशमशा रहे हैं। पर कटे पक्षी की तरह छटपटा रहे हैं। कोई क्यूं नहीं रोकता आडवाणी की गाड़ी को। लेकिन क्या करें। उनके पास उतनी ताक़त नहीं बची। और जिसके पास ताक़त है, वो खुद सारथी के साथ है।
दूसरी बात, आडवाणी इस यात्रा के ज़रिए भ्रष्टाचार और महंगाई को मुद्दा बनाकर मिशन 2014 को तय करना चाहते हैं। इसके लिए जननायक जेपी के जन्म दिन और जन्म स्थली से बेहतर जगह नहीं मिल सकता था। सो उन्होंने सीताब दियारा से ही इस यात्रा की शुरुआत की।
तीसरी बात, पीएम इन वेटिंग के लिए नरेन्द्र मोदी कुलबुला रहे थे। उन्हें भी आडवाणी ने मौन जवाब दे दिया। इस मसले पर आडवाणी को जदयू का दिल खोलकर समर्थन मिला। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दबाव के बावजूद आडवाणी ने हर संभव साबित करने की कोशिश है कि एनडीए का सर्वमान्य नेता अभी तक वही हैं।
देश में भ्रष्टाचार और महंगाई बड़ा मुद्दा है। जनता इसकी आग में झुलस रही है। यूपीए सरकार के खिलाफ आवाम में गुस्सा है। अन्ना हज़ारे के ज़रिए लोग अपनी ताक़त दिखा चुके हैं। आडवाणी उसी ताक़त को अपने पक्ष में लाकर ज़िंदगी की अंतिम ख्वाहिश पूरा करना चाहते हैं।
रथ यात्रा के खांटी खिलाड़ी लालकृष्ण आडवाणी देश को जगाने चले हैं। जनता के मिजाज को टटोलने में जुटे हैं। 23 राज्यों और चार केन्द्र शासित प्रदेशों में पहुंचकर हुंकार भरेंगे। परिवर्तन की भूमि से शुरू की गई इस यात्रा में आम लोगों का उत्साह देखना होगा....क्योंकि 84 साल के आडवाणी की ज़िंदगी की ये अंतिम अंतिम देशव्यापी यात्रा होगी।