बुधवार, अगस्त 24, 2011

भारत में अनशन


हिन्दुस्तान गांधी का देश है....जहां के लोगों का अनशन सबसे बड़ा हथियार है...अनशन के ज़रिए स्वतंत्रता की लड़ाई से लेकर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ लड़ाई लड़ी जाती रही है....देश की आज़ादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह ने भी अनशन का सहारा लिया था....1929 में भगत सिंह ने जेल में क़ैदियों के लिए बेहतर खाना, ठीक कपड़ा, किताब और अख़बारों की मांग कर रहे थे....63 दिनों तक ये अनशन चला था..इस दौरान भगत सिंह के साथी जतिन दास की मौत भी हो गई....अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से भारत की आजादी की लड़ाई के दौरान 1922, 1930, 1933 और 1943 में अनशन किया। 1943 में तो महात्मा गांधी ने 21 दिन तक अनशन किया था......आज़ादी के बाद भी अपनी बात मनवाने के लिए अनशन बड़ा हाथियार बना रहा.....1952 में आंध्र प्रदेश के पोटि श्रीरामुलु ने भाषा के आधार पर मद्रास प्रेजिडेंसी से आंध्र प्रदेश के अलग होने के मुद्दे पर अशन किया...अनशन के 82वें दिन श्रीरामुलु की मौत हो गई....गौरक्षा के लिए 1966 में महात्मा रामचन्द्र वीर ने १६६ तक अनशन किया...को जगद्गुरु शंकराचार्य श्री निरंजनदेव तीर्थ ने ७२ दिन, संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने ६५ दिन, आचार्य श्री धर्मेन्द्र महाराज ने ५२ दिनों तक बिना अन्ना जल ग्रहण किये बैठे रहे...1967 में मास्टर तारा सिंह ने पंजाब सूबा बनाने के लिए 48 दिन तक अनशन किया था....आखिरी दिन तारा सिंह की मौत हो गई थी। हालांकि इसके चलते पंजाब को 3 राज्यों में बांट दिया गया....1974 में छात्र आंदोलन के बाद मोरारजी देसाई ने गुजरात विधानसभा भंग करने और उपचुनाव कराने की मांग को लेकर अनशन शुरू किया...उनके अनशन के दबाव में सरकार झुकी और उनकी मांगे मान ली गई....पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी 2006 में 25 दिनों तक अनशन की... ममता सिंगूर के किसानों की ली गई ज़मीन वापिस कराने की मांग कर रही थी....नर्मादा बचाओ आंदोलन से जुड़ी समाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर बीस दिनों तक अनशन पर बैठी रही....तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर सांसद के चेन्द्रशेखर राव ने 2009 में ग्यारह दिनों तक अनशन किया....मणिपुर की इरोम चानू शर्मिला तो पिछले ग्यारह सालों से अनशन कर रही है...इरोम शर्मिला उत्तर पूर्व भारत से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर ऐक्ट, 1958 को हटाने की मांग कर रही हैं...इसी तरह स्वामी निगमानंद ने राष्ट्रीय नदी गंगा में खनन रोकने के लिए 19 फरवरी 2011 से अनशन शुरू किया,,,लेकिन सरकार ने उनकी मांगों को तवज्जो नहीं दी... अनशन के 68वें दिन निगमानंद कोमा में चले गए और 12 जून 2011 की देर रात निगमानंद की मौत हो गई.....अब बात अन्ना की....गांधीवादी समाजसेवी अन्ना और अनशन का रिश्ता काफी पुराना रहा है....अब तक पंद्रह बार अनशन कर चुके अन्ना जनलोकपाल बिल की मांग को लेकर इसी साल पांच अप्रैल को दिल्ली के जंतर मंतर पर अनशन पर बैठे....97 घंटे बाद 9 अप्रैल, 2011 को सरकार ने लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने के लिए जॉइंट ड्राफ्ट कमिटी बनाने की घोषणा की जिसके बाद ही अन्ना ने अनशन तोड़ा। इसके बाद दिल्ली में बाबा रामदेव के आंदोलन के दौरान पुलिस कार्रवाई के विरोध में 8 जून को अन्ना ने राजघाट पर एक दिन का उपवास रखा। इसके पहले भी अन्ना महाराष्ट्र में करप्शन और आरटीआई के सवाल पर 2003 और 2006 में अनशन कर चुके हैं...उसके बाद बाबा रामदेव ने काले धन के मुद्दे पर 9 दिनों तक अनशन किया। तबियत खराब होने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया....सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी.....अन्त में उन्हें खुद अपना अनशन तोड़ना पड़ा....

शुक्रवार, अगस्त 05, 2011

इंतज़ार......

अमिताभ बच्चन। सदी के महानायाक। जितना बड़ा कद। जितना बड़ा नाम। वैसे ही देखने की तमन्ना। उनसे मिलने की ख्वाहिश। जब ज़िंदगी का सपना पूरा होने वाला होता है तो चेहरे पर क्या चमक होती है, ये हर किसी को देखकर लगता था। कोई बोलकर अपनी ख्वाहिश जता रहा था। तो किसी की मुस्कान हर लफ़्ज को बया कर रही थी। जिसे सिर्फ सिनेमा के पर्दे पर या टीवी पर देखा था। उसे नजदीक से देखने की हसरत पूरी होने वाली है। हर किसी ने अपने पहचान वालों को फोन कर दिया। आज अमिताभ को देखेंगे। हाथ मिलाएंगे। ऑटोग्राफ लेना है। फोटो खिंचवाना है। ऐसा लग रहा था, जैसे चांद धरती पर उतर रहा हो।
जितनी बड़ी शख्सियत उतनी ही बड़ी इंतज़ार की घड़ियां। पटना में मौर्य के ऑफिस आने की सूचना मिली। सुबह आठ बजे से इंतज़ार शुरू। मौर्य के कर्मचारियों की। उन प्रशंसकों की, जो उनकी एक झलक पाने के लिए मौर्य ऑफिस के बाहर खड़े थे। लोगों में एक अजीब उत्सुकता दिखी। पहलीबार किसी महानायक से मिलने के लिए इतना बड़ा दीवानपन देखा। पागलपन देखा। नजदीक से देखा, महानायक के प्रशंसकों को। कोई वर्ग नहीं। कोई आयु नहीं। साठ पार कर चुकी महिलाएं। सड़क पर स्कूली बच्चों की ऐसी कतार लगी थी, जैसे स्कूल में छुट्टी दे दी गई हो। हर निगाहें शहंशाह को ढूंढ़ रही थी। ना जाने कब आएंगे। सामने छत पर दो लड़के, यूं बैठे थे मानों दीवार का विजय और रवि हो। कौन था पता नहीं। लेकिन दोनों की आतुरता देखते बनती थी।
वक़्त के साथ मन की अकुलाहट भी बढ़ती जा रही थी। आख़िर कब ख़त्म होगी इंतज़ार की घड़ी। छह घंटे तक यूं ही इंतज़ार होता रहा। लेकिन वो नहीं आए। आया तो उम्मीदों को तोड़ने वाला संदेश। अमिताभ दिल्ली चले गये। लंबे इंतज़ार के बाद उम्मीदों का बिखरना क्या होता है, हर चेहरे पर झलक रहा था। क्यों नहीं आए अमिताभ। पांच मिनट के लिए आ ही जाते तो क्या हो जाता। कौन सी आफ़त टूट पड़ती। भूखे प्यासे इंतज़ार करता रहा। ऐसे थोड़े ही होता है। जितनी मुंह, उतनी बातें। लेकिन हक़ीक़त की हवा अपने झोंके के साथ सपनों का आशियाना उड़ा ले गया।