मंगलवार, नवंबर 23, 2010

राहुल और सोनिया पर घोटाले का आरोप नहीं है....

इस साल देश में कुछ ही दिनों के अंतराल में एक एक कर पांच घोटालों का पर्दाफाश हुआ। ख़ास बात है कि पांच में से चार घोटलों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कांग्रेस शामिल रही है। वही कांग्रेस जिसका नारा है "कांग्रेस का हाथ,आम आदमी के साथ"। वही कांग्रेस जिसके नेता राहुल गांधी युवाओं के जरिये कुर्सी पर काबिज होकर देश को नई दशा और दिशा तय करने में जुटे हैं। काबिल-ए-गौर है कि इन तमाम घोटालों में तथाकथित युवा नेताओं का नाम आ रहा है।
         सबसे पहले बात करते हैं देश के अब तक के सबसे बड़े टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले की। कांग्रेस की सरकार में संचार मंत्री रहे ए राजा पर एक लाख सत्तर हजार करोड़ रूपयों के घोटाले का आरोप है। विपक्ष के दबाव में राजा को इस्तीफा देना पड़ा। हलांकि राजा डीएमके के नेता हैं, लेकिन वो मंत्री कांग्रेस सरकार में हैं। साथ ही जब विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेर रहा था तो कांग्रेसी नेता राजा का बचाव कर रहे थे।
        इस साल का दूसरा सबसे बड़ा घोटाला कॉमन वेल्थ गेम्स में सामने आया है। जो लगभग 87 हजार करोड़ के आसपास का है। इसमें भी कांग्रेसी नेताओं पर आरोप लगे हैं। ख़ासकर सुरेश कलमाड़ी पर। जो भारतीय कॉमन वेल्थ गेम्स के अध्यक्ष भी हैं। और कांग्रेस के सांसद भी। यहां भी किरकीरी होने पर कांग्रेस, कलमाड़ी पर कार्रवाई कर चुकी है।
      ऐसे ही खेल से ही जु़ड़ा दूसरा मामला है इंडियन प्रीमियर लीग का। इस मामले में फंसकर कांग्रेस के तेजतर्रार नेता और मंत्री शशि थरूर अपना इस्तीफा दे चुके हैं। पार्टी को इस मामले में कितनी फजीहत हुई, इसे कहने की ज़रूरत नहीं है।
        और सबसे ताज़ा मामला आदर्श सोशाएटी घोटाले का है। जिसका आरोप महाराष्ट्र के तत्कालिन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर लगे हैं। चव्हाण को भी इस्तीफा देना पड़ा। ख़ास बात ये है कि चव्हाण महाराष्ट्र के पहले कांग्रेसी मुख्यमंत्री नहीं हैं, जिन पर घोटाला का आरोप लगा है। ए आर अंतुले, सुशील कुमार शिंदे जैसे कई दिग्गजों के दामन घोटलों के आरोप में दागदार हो चुके हैं।
           गिनती यहीं पर आकर खत्म नहीं होती है। फेहरिस्त काफी लंबी है। अगर थोड़ा और भी पुराने फाइलों को खंगालें तो कई और नाम कांग्रेस को शर्मसार करते नज़र आएंगे। पहले बात बोफोर्स घोटाले की। जिसमें कांग्रेस के सबसे युवा और सशक्त प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर आरोप लगा था। उसके बाद हवाला कांड सामने आया तो उसमें पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव पर आरोप लगे। इतना ही नहीं, नरसिम्हा राव पर तो सरकार बचाने के लिए खरीद फरोख्त का भी आरोप है। इसके अलावा पूर्व संचार मंत्री पंडित सुखराम घोटाले के आरोप जेल जा चुके हैं। पहली बार सुखराम के बेड के नीचे से ही पैसा निकला था। इराक का तेल के बदले डॉलर घोटाले में काग्रेस के वरिष्ठ मंत्री नटवर सिंह और उनके परिजन पर आरोप हैं। जिसके बाद नटवर सिंह को विदेश मंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी थी। अर्जुन सिंह सरीखे कई नेताओं पर भी घोटालों के आरोप है।
    इनके अलावा वर्तमान राजनीति के और भी कई दिग्गज हैं जो घोटाले को अपने दामन में छुपाये सत्ता के सहारे आदर्शवाद का मुखौटा पहने घूम रहे हैं या इस दुनिया से विदा हो गये हैं। वैसे आरोप तो यहां तक है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्रा की हत्या इसलिए हुई थी क्योंकि उन्हें जानकारी थी कि संजय गांधी ने कहां हेरफेर किया है। हलांकि इसका कोई लिखित तौर पर पुख्ता प्रमाण नहीं हैं।
     अब थोड़ा इससे आगे बढ़ते हैं। बात चारा घोटाला का करते हैं। जिसके नायक लालू प्रसाद यादव थे। उन्हें कांग्रेस का समर्थन हासिल था। हलांकि चारा घोटाले में पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा भी आरोपी हैं।
     इसी तरह 2009 में सामने आया कोड़ा घोटाला मामला। एक नवनिर्मित और गरीब राज्य के मुख्यमंत्री ने तब घोटालों का सारा रिकॉर्ड तोड़ दिया था। मधु कोड़ा ने पूरे दस हजार करोड़ का गबन कर लिया था। एक निर्दलीय मुख्यमंत्री को कांग्रेस का समर्थन था। वैसे भी जिस तरह कोड़ा ने विदेशों में पैसा भेजा वो केन्द्र सरकार के जानकारी के बिना संभव नहीं है। और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी।
        इन तमाम बातों से इतना तो साफ है कि जितने भी बड़े घोटाले हुए हैं उसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कांग्रेस शामिल रही है। लेकिन इस सब के बावजूद देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी के लिए एक राहत की बात ये है कि राहुल और सोनिया गांधी पर घोटालों के आरोप नहीं लगे हैं। लेकिन विपक्ष ये भी कहने से गुरेज नहीं कर रहा है कि कई घोटाले इन दोनों के संरक्षण के बिना संभव नहीं हुआ।

सोमवार, नवंबर 22, 2010

मां की याद

धुओं से तरबतर
चुल्हे को फूंकती
रोटी बेलती
और फिर उसे सेक कर खिलाती
भूख नहीं रहने पर भी
कौआ, मेना का कौर बनाती
मना करने पर
प्यार से डांटती
ज़िद करने पर
दुलार कर खिलाती
अब जब भूखा सो जाता हूं
तो सब कुछ याद आता है
उसका वो डांटना
अब रूलाता है.....

शनिवार, नवंबर 20, 2010

ये किसी की हक़ीकत है


मुलाकात
बातें
प्यार
विश्वास
समर्पण
धोखा
ब्लैकमेलिंग
दर्द
फरियाद
फजीहत
बेबसी
खुदकुशी ।।
                पहली बार उन दोनों की नज़रें शर्माते हुए मिली थी। फिर शुरू हुआ बातों का सिलसिला। ये बातें दोस्ती में बदल गई। दोनों चहचहा कर मिलने लगे। फिर शुरू हुआ प्यार का खेल। दोनों के दोस्ती के बीच विश्वास का जो पुल बना,वो भीतर से खोखला था। लेकिन लड़की उसे समझ नहीं पाई। उस पुल के सहारे वो जिंदगी की नहर को पार करने की ठान ली। लड़की ने अपना सबकुछ लड़के को समर्पित कर दिया। लेकिन लड़का तो फरेबी निकला। उन्होंने लड़की का एमएमएस बना डाला। और फिर ब्लैकमेल करने लगा। एक हंसती खेलती ज़िदगी की फजीहत हो गई। वो बेबस हो गई। उन्होंने कई जगहों पर फरियाद की। लेकिन कुछ नहीं हुआ। अब उसकी ज़िंदगी बोझ लगने लगी। वो बेबस होकर खुदकुशी कर ली। ज़िंदगी खत्म कर ली। ये सिर्फ उसकी व्यथा नहीं है। फरेबी इस संसार में कईयों की कथा है। बस,कुछ दब जाते हैं। कुछ सामने आ जाते हैं।

मंगलवार, नवंबर 16, 2010

ज़िंदगी की क़ीमत

भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी इमारत ने कइयों को लील लिया। खूबसूरत महल मलबों की ढेर में तब्दील हो गया। मकान कब्रिस्तान बन गया। ज़िंदगी दफ्न हो गई। कई परिवार कभी ना उबरने वाले ज़ख्म के समंदर में डूब गये। तबाही कभी बता कर नहीं आती। अचानक आती है। ये सब कुछ भी अचानक हुआ। अचानक ही मौत ने दस्तक दी। अचानक इमारत गिरी और अचानक ही सालों का ख्वाब पलभर में बिखर गया।
     जिस घर में रहकर ज़िंदगी का तानाबाना बुना करते थे, वही मौत का कारण बन गया। सपनो का महल हकीकत में भरभरा कर गिर गया। देखते ही देखते सब कुछ खत्म हो गया। ठहाकों की गुंज चीख में बदल गई। दिल का दर्द आँसू बहकर निकलने लगा। किसी का बाप नहीं रहा, किसी का भाई, किसी की मां तो किसी की पत्नी नहीं रही। किसी किसी का तो पूरा परिवार ही असमय काल के गाल में समा गया। सुबह होते होते कई जिंदगी दस्तावेज में सिमट कर रह गयी। अस्पतालों में लोग अपने परिजनों को फोटे के ज़रिये पहचानने की कोशिश करने लगे। अस्पतालों में अब भी लाशों की ढेर लगी है। कुछ मुर्दा है तो कुछ ज़िंदा लाश। जिनकी आंखें सूनी है। आँसू सूख चुका है। घाव बेदर्द हो चुका है। ज़िंदगी जिल्लत लग रही है। क्योंकि इनमें से कई लोग ऐसे हैं जिनका अब अपना कोई नहीं रहा।
        मौत की कोई मुकम्मल तादाद सामने नहीं आई। बस, एक अनुमान आया। मौत का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस मकान में ये हादसा उसमें चालीस परिवार अपने बाल बच्चों के साथ रहते थे। ये कोई पहला या आखिरी मकान नहीं था। शहर में ऐसे कई मकान हैं जहां ऐसे सैकड़ो परिवार रहते हैं। जब उनलोगों ने टीवी इस हादसे की पहली तस्वीर देखी, तो कलेजा हाथ में आ गया। छत की ओर देखने लगे। सासें थम गई। सोच में पड़ गये। एक अनहोनी दिमाग में दौड़ने लगा। लेकिन मजबूरी और जरूरी के बीच सबकुछ भूलकर सो गये।
       अब जब सबकुछ खत्म हो गया, तो जांच का ऐलान हुआ। हर बार की तरह ज़िंदगी की कीमत लगा दी गई। मर गये तो दो लाख। घायल हो गये तो पचास लाख। जिस समय ये ऐलान हो रहा था, उस समय शासक का आत्मविश्वास देखने लायक था। वो इस अंदाज़ में अपनी बात कह रही थी, मानों मरने वालों को ज़िंदगी लौटा रही हो। शायद उन गरीबों के लिए ये रकम बहुत ज्यादा हो। लेकिन क्या उनके साथ अगर ऐसा हो तो......नहीं भगवान ना करें। क्योंकि जिंदगी सबको एक ही जगह से मिलती और अपने परिवार के लिए उसकी अहमियत भी उतनी ही......